कला साधना
आभामण्डल का रहस्य
कला एक अत्यन्त सूक्ष्म प्रकाश है। कला दो प्रकार की होती है एक "आप्ति" दूसरी "व्याप्ति"। आप्ति किरणें वे है जो प्रकृति के अणुओं से स्फुटित होती है एवं व्याप्ति वे है जो देवता व पुरुष के अन्तराल द्वारा आविर्भूत होती है जिन्हें हम तेजस या आभामण्डल भी कहते है। अंग्रेजी में इसे “ओरा" कहते है। व्यक्ति के तेजस से उसके सात्विक, राजसी, तामस गुणों की प्रधानता का अंदाज लगाया जा सकता है।
हमारे शरीर में जिस तत्त्व की अधिकता होगी उसका रंग व प्रकृति प्रधान होगी। पीले रंग में क्षमा गंभीरता, वैभव। श्वेत रंग में शांति, कोमलता, प्रेम। लाल रंग में गर्मी, उष्णता, क्रोध, उत्तेजना। हरे रंग में चञ्चलता, कल्पना, भावुकता, धूर्त्तता, प्रगतिशीलता। नीले रंग में विचारशीलता, प्रेरणा, सात्विक, आकर्षण के गुण होते है। पंचतत्त्वों में जिस तत्त्व की प्रधानता होगी उसी रंग से उसका ओरा प्रभावित होगा।
॥ तत्त्वों की कला साधना ॥
पंच तत्वों की आभा किरणों को अपने अंदर विकसित करने के लिए चक्रो के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। तत्व साधना में चक्र साधना के रंगों में थोड़ा फर्क है। निम्न रंगों के साथ बीज मंत्र का जाप करें।
1-
पृथ्वी तत्त्व
मूलाधार में पीले रंग के "लं" बीज का ध्यान करे। यही "भू" लोक है।
2-
जल तत्त्व पूर्व की तरफ आसन लगाकर बैठे। स्वाधिष्ठान चक्र में श्वेत रंग का अर्द्धचन्द्राकार "वं" बीज का ध्यान करे। “भुवः " लोक का " स्थान है।
3-
अग्नि तत्त्व
"स्वः" लोक का प्रतिनिधि है है, मणिपूर चक्र में इसका स्थान है, यह तत्त्व त्रिकोण आकृति, लाल रंग का है इस तत्त्व का बीज मंत्र "रं" बीज के साथ लाल रंग का ध्यान करे।
4-
वायु तत्त्व
"महः" तत्त्व प्रतिनिधि है। इसका स्थान हृदय में स्थित अनाहत चक्र है। "यं" बीज के साथ हरे रंग का ध्यान व चिन्तन करे।
5-
आकाश तत्व
इसका निवास कण्ठ में विशुद्ध चक्र में है। यह "जनलोक" का प्रतिनिधि है। चित्र विचित्र रंग वाले आकाश तत्त्व का " हं" बीज सहित ध्यान करे।
नित्य अभ्यास से तत्व शुद्धि के साथ आभामण्डल शक्तिशाली होता है।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा