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Sunday, January 16, 2022

हर मंत्र के आगे ॐ क्यों लगाया जाता है??

हर मंत्र के आगे ॐ क्यों लगाया जाता है??

क्या है इसका विज्ञान?


ॐ को प्रणव बीज भी कहा जाता है। 

प्रणव को 'प्र' यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली 'ण' यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से 'प्र' अर्थात प्रकर्षेण, 'ण' अर्थात नयेत् और 'व:' अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।


ॐ को मंत्र के आगे लगाने से, मन्त्र का जनन और मृत अशौच का दोष दूर हो जाता है।


मन्त्र का अशौच


भारतीय संस्कृति में दो प्रकार के अशौच माने गये है ( १ ) जनन अशौच (२) मरण अशौच


प्रकृति में दो तरह का विस्फोट हुआ पहला सृष्टी के समय दूसरा संहार के समय। इनकी ऊर्जा विस्फोटिक शक्तियाँ भिन्न भिन्न होती है परन्तु यह विस्फोट विघटन प्रारंभ में व अन्त में अशुद्ध वातावरण भी पैदा करता है।


मंत्र जप करते समय भी प्रारंभ काल में एनर्जी फील्ड जब उर्ध्वगमन करता है तो हमारी ऊर्जा में विस्फोट होता है। जप समाप्ति के समय जैसे मशीन को रोकने पर गाड़ी के ब्रेक लगाने पर झटका लगता है अर्थात् प्रवाह रुक जाता है तो आंतरिक विस्फोट होता है इस तरह मंत्र को भी दो प्रकार का अशौच लगता है। जनन अशौच व अंत में मरण का अशौच लगता हैं।

इसलिये ऊर्जा बैलेंस करना बहुत ज़रूरी होता हैं। 


निवारण


यदि माला प्रारंभ करने के पहले व माला पूरी होने पर 'ॐ' का उच्चारण करे तो ये अशौच दूर होता है।



मंत्र जप के पहिले एवं अंत में गायत्री मंत्र का ॐ का मंत्र के साथ २१-२१ बार जप करने से भी जनन अशौच व मरणशौच दूर होता है।


विवेक 

अनंत प्रेम

अनंत प्रज्ञा

Wednesday, February 17, 2021

MANTRA RAHSHYA

सभी दिव्यात्माओं को आत्मनमन, आपने हर मंत्र के बाद नमः, स्वाहा, फट आदि शब्दो का प्रयोग देखा होगा, आज इन्ही के रहस्य से जुड़ा ये लेख है।


मंत्र रहस्य
विवेक
मन्त्रो के अन्त से पल्लव, पताका आदि के नाम से जो सांकेतिक शब्द लगते है, वही साधक की चित्तवृत्ति को प्रभावित किया करते है। वे सांकेतिक शब्द ये है:-
1. नमः :-- शब्द साधक को विनयशीलता का भाव प्रदान करता है।अन्तःकरण को शान्त अवस्था में नमः शब्द का प्रयोग होता है।
2.स्वाहा :-- जो साधक यथाशक्ति अपनी शक्तियों का उपयोग परोपकार के लिए करता है। परोपकार रत साधक परहित के लिए अपने आपको स्वाहा कर देता है, वह अपने विरोधियों, निन्दकों की विरोधी, ईर्ष्यालु भावनाओं को निरस्त कर उन पर पूरा अधिकार पा लेता है।
3.वषट् :-- जिस मन्त्र के अन्त में वषट् लगा रहता है उसकी साधना करने वाले साधक के अन्तःकरण की उस वृत्ति का वषट् लक्ष्य कराता है जो अपने विरोधियों, शत्रुओं के अनिष्ट साधन में अथवा उनके प्राणहरण के लिए तत्पर रहता है।
4.वौषट् :-- साधक अपने शत्रुओं के हृदयो में जब परस्पर राग- द्वेष उत्पन्न कराने की प्रबल भावना रखता है तब उसे मन्त्र की साधना करनी चाहिए जिसके अन्त में वौषट् रहता है।
5. हूँ :- यह सांकेतिक बीज साधक के शत्रुओं का उच्चाटन कराने और उनके प्रति भयंकर क्रोध का भाव रखने का ज्ञापक है।
6. फट् :- साधक जब अपने शत्रुओं के प्रति शस्त्र प्रयोग करने का भाव रखता है तब वह उस मन्त्र की साधना करता है, जिसके अन्त में फट् रहता है।
उपर्युक्त सांकेतिक शब्दों का विस्तृत वर्णन उड्डीस तन्त्र में मिलता है और महानिर्वाण तन्त्र में इन्ही सांकेतिक शब्दों का प्रयोग अंग्न्यास और करन्यास के लिए किया गया है।तन्त्र शास्त्र के अतिरिक्त उपर्युक्त सांकेतिक शब्दों के प्रयोग वेद मन्त्रो में भी अधिकता से मिलते है।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

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