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Sunday, April 10, 2022

Vijay Rath

 विजय रथ



जीवन सुंदर अवसर है। भिन्न दृष्टि में जीवन को संघर्ष भी कहा जाता है। इस दृष्टिकोण में संसार शत्रु है। बेशक हमारे और संसार के बीच तमाम अन्तर्विरोध भी हैं लेकिन संसार को युद्ध क्षेत्र मानने वाले ‘विजय के सूत्र’ खोजा ही करते हैं। जीवन युद्ध में अनेक शत्रु हैं। आमने-सामने की लड़ाई युद्ध कहलाती है। शत्रु हम सबको क्षति पहुंचाते हैं। इस तरह क्षति पहुंचाने वाली सारी शक्तियां भी शत्रु हैं। पतंजलि ने योगसूत्रों में चित्तवृत्तियों को भी ऐसा ही बताया है। उन्होंने उनकी संख्या पांच बताई है। युद्ध या संघर्ष में विजय की इच्छा स्वाभाविक है। 


प्राचीन युद्धों में रथ एक आवश्यक उपकरण रहा है। रथ सवार योद्धा रथी थे और रथहीन योद्धा विरथी। श्रीराम के पास रथ नहीं था। रावण रथ पर सवार था। श्रीराम को रथविहीन देखकर सहयोगी विभीषण व्यथित हुए।


'बोले नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना,

केहि विधि जितब वीर बलवाना।"


न रथ, न कवच और न पैरों में जूते तो आप रावण जैसे वीर को कैसे जीतेंगे?  


श्रीराम बताते हैं लेकिन विजय दिलाने वाला रथ लोहे का उपकरण मात्र नहीं होता


‘सुनहु सखा कह कृपा निधाना,

जेंहि जय होई सो स्वयंदन आना।’ 


यहां जिताऊ रथ दूसरा है। यह रथ मजेदार जिज्ञासा है। 



★ जीवन-रण के विजय-रथ में शौर्य और धैर्य रुपी दो पहिये होते हैं| 


• पथ की विषमता को देखकर बिना घबराये हुए आगे लेके चलते जाना शौर्य से संभव है। निरंतर इन विषमताओं के गड्ढों से टकराते हुए भी चलते जाना धैर्य से संभव है| इन दोनों के बीच रथ के पहियों की तरह संतुलन भी आवश्यक है, जितना अधिक शौर्य वाला पथ आप चुनेंगे, उतना ही धैर्य भी आपको रखना होगा!


★ सत्य और शील का ध्वज है। 


• रणभूमि में रथ पर सवार रथी की पहचान के लिए रथ पर ध्वज होता है, सत्य और शील ही विजय रथ की पहचान होती हैं।



★ शक्ति, विवेक, दम और परहित इस रथ के चार घोड़े हैं।



• जीवन के रण में विजय दिलाने वाले इस रथ के चार घोड़े हैं: बल, विवेक, दम और परहित यानी दूसरों की भलाई करना|


बल केवल शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक भी होना चाहिए| विज्ञान में बल की परिभाषा है: जो चलते को रोक दे, गति या दिशा बदल दे, रुके को चला दे वही बल है| स्वयं इस परिभाषा से विचार कीजिये कि भगवान राम के विजय रथ का यह घोड़ा जीवन-रथ को किस प्रकार खींचता है!


विवेक का अर्थ है किसी भी बात के अलग अलग पक्षों को समझ पाना। विवेक की सहायता से ही हम जीवन  में कोई भी निर्णय ठीक प्रकार से ले सकते हैं| विवेक की नुकीली सुई से सूक्ष्म विवेचना के द्वारा ही व्यक्ति व समाज के चरित्र के शिल्प को सुन्दरता से गढ़ा जा सकता है| राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी भी अपनी कालजयी कृति रश्मिरथी में कहते हैं : “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है|” इतिहास साक्षी है कि जब-जब लोग विवेक के बजाय भावनाओं से काम लेने लगते हैं, विनाश के सिवा कुछ हाथ नहीं 


दम को कई बार बल का पर्यायवाची समझा जाता है, परन्तु इसका अर्थ थोड़ा अलग है। दम किसी भी परिस्थिति में दृढ़ता पूर्वक खड़े रहने का गुण है  बलवान होने पर भी व्यक्ति में अगर दम ना हो तो वह ज़रा सी भी विकट परिस्थिति में भाग खड़ा होगा| दिनकर जी ने भी अपनी महान कृति कुरुक्षेत्र में कहा है “जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर जो उससे डरते हैं, यह उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं|”


अगर कोई महान लक्ष्य ना हो तो बाकी तीन घोड़े आपको कहीं भी नहीं ले जायेंगे! परहित का घोड़ा वास्तव में प्रेरणा का स्रोत है। लक्ष्य सिर्फ अपने तक सीमित रखना एक बहुत मामूली लक्ष्य है, स्वयं के लिए आप कितना ही कर सकते हैं, अपनी क्षमताओं को कितना ही विकसित सकते हैं? पर यदि आपने जीवन में दूसरों की सहायता का लक्ष्य साध रखा है, तो आप परहित के चौथे घोड़े से अपनी सीमाओं को निरंतर चुनौती देते हुए अपने बाकी तीन घोड़ों बल, विवेक और दम को भी पुष्ट बनायेंगे| इससे आपके स्वयं के सामर्थ्य में भी वृद्धि होगी और कुछ भी आपके लिए असंभव नहीं रहेगा।


★ ईश भजन सारथी है।


ईश भजन”का अर्थ है अपने आदर्शों को सदा अपने दिमाग में दोहराते हुए स्मरण रखना है| अपने आदर्शों की दृष्टि से ही इस रथ को कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है|


★ बिरति यानी वैराग्य चर्म यानी ढाल है| वैराग्य की ढाल मोह से हमारी रक्षा करती है| जीवन में कई गलत निर्णय मोह के कारण लिए जाते हैं| मोह हमें अपनी सीमाओं को लांघने से भी वंचित रखता है| स्वयं विचार करें की दैनिक जीवन में आपकी कितनी सारी चिन्ताएं मोह के कारण हैं!



★ संतोष कृपाण यानी तलवार है जो कि अति महत्त्वाकांक्षा को काटती है| जीवन में अगर संतोष न हो तो पल प्रतिपल और अधिक पा लेने की चिंता में बीतता है| अति महत्त्वाकांक्षा बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी घुटनों पर ला सकती है| इसलिए संतोष की तलवार से अति महत्त्वाकांक्षा को काटते रहें|


संचय यानी कंजूसी के शत्रु के संहार के लिए दान रुपी परशु या फरसा है| कंजूसी मोह और आकर्षण से जन्म लेती है|दान के फरसे से कंजूसी को काटते रहने से धन-संपत्ति के मोह और आकर्षण से मुक्ति मिलती है, और आप स्वयं विचार कीजिये कि धन की चिंता ना हो तो जीवन कितना सुगम होगा 


★ बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है और विज्ञान कठोर धनुष है 

ढाल, तलवार और फरसा पास के हथियार हैं, जिन्हें शस्त्र कहते हैं। इनसे पास स्थित शत्रुओं से लोहा लिया जा सकता है। अपने अन्दर के मोह, महत्त्वाकांक्षा और कंजूसी के लिए यह शस्त्र उपयुक्त हैं। पर दूर के शत्रुओं के लिए जिन हथियारों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें अस्त्र कहते हैं। शक्ति ऐसा ही एक दिव्यास्त्र है: भगवान राम बुद्धि को दिव्यास्त्र बताते हैं और विज्ञान को दिव्यास्त्रों को चलाने वाला मज़बूत धनुष। यहाँ विज्ञान शब्द का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है।



★ निर्मल अविचल मन तरकश है। एकाग्र चित्त, यम नियम बाण हैं।



अमल अचल मन त्रोण यानी तरकश के सामान है| तरकश में कई तीर रहते हैं| इसी प्रकार दिन-प्रतिदिन के जीवन रुपी युद्ध में बने रहने के लिए हमें अमल अचल मस्तिष्क चाहिए| विचारों में स्पष्टता और ईर्ष्या, क्रोध, घृणा आदि किसी भी प्रकार की दुर्भावना से मुक्त रहने वाला मस्तिष्क अमल है| सभी प्रकार के भटकावों से बचकर एकाग्र रहने वाला मन अचल है| निरंतर अभ्यास से अमल अचल मन प्राप्त किया जा सकता है| ऐसे मन में किस प्रकार के शिलीमुख यानी तीर रहते हैं? 


भगवान राम सम, यम और नियम को तीर बताते हैं|सम यानी दुःख सुख में सामान भाव रखना, यम और नियम महर्षि पतंजलि अष्टांग योग के दो अंग हैं।यम के अंतर्गत पांच सामजिक कर्त्तव्य आते हैं: अहिंसा (शब्दों, विचारों और कर्मों में ), सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (इन्द्रिय के सुखों में संयम रखना) और अपरिग्रह (किसी भी चीज को जरूरत से ज्यादा  इकठ्ठा न करना)। नियम के अंतर्गत पांच व्यक्तिगत कर्त्तव्य आते हैं: शौच (शरीर और मन को साफ़ रखना) , संतोष, तप (स्वयं अपने अनुशासन में रहना), स्वाध्याय (खुद से अध्ययन करके अपनी समझ का विस्तार करना) और ईश्वर-प्रणिधान (अपने आदर्शों को ध्यान में रखना)। यम और नियम दैनिक जीवन के रण में अक्सर प्रयोग में आते हैं, इसलिए तरकश के तीरों से इनकी तुलना की गयी है।




★ गुरुजनों और विप्र यानी ज्ञानी लोगों के प्रति सम्मान रखना कवच है।


•जीवन की सभी समस्याओं का समाधान एक ही व्यक्ति के पास होना संभव नहीं है| इसलिए यह आवश्यक है कि दूसरों से सीखा जाये| यदि ज्ञानी लोगों के प्रति हमारा सम्मान बना रहेगा तो उनकी सहायता से जीवन में हमारे ऊपर होने वाले प्रहार सहन करने के लिए हम अधिक उपयुक्त बनेंगे|


ऐसे महान रथ का वर्णन करके भगवान राम कहते हैं कि इसके सामान जीवन में विजय पाने का कोई और उपाय नहीं है| जो कोई भी ऐसे महान रथ पर सवार होता है, उसके जीतने के लिए कहीं भी कोई भी शत्रु बचता ही नहीं है!


रामचरित मानस लंका काण्ड में वर्णित यह विजय रथ भारतीय जीवन मूल्यों का दर्शन दिग्दर्शन है। विजय पर्व के उल्लास में इसकी अनुभूति हमारे मन को प्रगाढ़ सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ती है। 


इस राम नवमी में, उपरोक्त सारे गुण आपके जीवन मे परिलक्षित हो, यही कामना है।


विवेक

अनंत प्रेम

अनंत प्रज्ञा

Monday, March 1, 2021

PAST AND FUTURE ARE IN THE HERE AND NOW

PAST AND FUTURE ARE IN THE HERE AND NOW

-YOG SUTRA
All of the characteristics, forms, memories, deep impressions, etc., exist in the here and now, whether in active or potential forms. The appearance of past and future comes from the condition, path, or order in which they are sequenced.
Try this simple technique that will help you to understand the function of mind.
Vivek
ARRANGING YOUR PHOTO ALBUM: Imagine that you have a huge box of photographs of people in a small community or extended family. Imagine that there are also photographs of numerous places. Now, imagine that you arranged all of these in a photo album, along with written captions. The way you arranged the photo album, and the words you chose for the captions would determine the nature of the past, as well as of the future. It is all a matter of arranging the here and now photo album. This is the way the mind sorts its memories and projects its perception of the future.
And in this way Past and future can be healed in present by doing right visualisation and giving right intention to the memories and perception.
Vivek
Infinite love
infinite wisdom

Friday, February 19, 2021

BHAAV KRIYA- The secret way to happy life

 


BHAAV-KRIYA
भाव-क्रिया
(The secret to live happy life)
First meaning of Bhaava-kriya means living in the present. The second meaning of bhaav-kriya is to do deeds wakefully. The third meaning of BHAAV-KRIYA is to remain constantly wakeful.
Bhaav kriya is a simplest process that anyone can do, it means three things to follow.
When you wake up in the morning and go to the bed take a deep breath say the below affirmation. Also remember this step in the whole day.
1. To live in the present moment.
Affirm- I will live in the present moment from just now.
2. To do things wakefully, and
Affirm- I will do each things wakefully from just now.
3. To remain constantly self-watchful.
Affrim- I will watch my each and every thought and action from just now.
🏵️LIVING IN THE PRESENT🏵️
Most of our life is spent in involvement in our past deeds and in worries regarding the future. Ninety percent of our lives is covered by the awareness of the past and of worries about the future. Only ten percent of them is spent
in the present. The past is no more real and the future has not yet materialized. The past is mere memory and the future a thing of imagination. The present alone is real. We spend very little time in living in the present. Mostly we remain
entangled in the memories of the past and in dreaming what is likely to happen in the future with the result that we lose our grip on the present. We cannot retain it. The fact, however, is that whatever happens in life happens in the present only.
🏵️ DO THINGS WAKEFULLY 🏵️
We do things half-heartedly or with half of the
mind engaged elsewhere. Work done with only half of the mind in it is never done completely. In this way we lose a lot of our energy. Things done half-heartedly do not produce tangible results. We should physically as well as mentally engage ourselves in our deeds earnestly and sincerely. While doing deeds the mind and the body should cooperate with each other.
🏵️ REMAIN CONSTANTLY SELF WATCH 🏵️
The third meaning of BHAAV-KRIYA is to remain constantly wakeful. The practitioner should remain fully conscious of the ideal he wants to achieve. Purity of heart is the precondition of meditation which aims at arousing the dormant energy in us. The practitioner should be constantly wakeful about these.
Vivek
Infinite love
Infinite wisdom

क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना?

 क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना? क्या सच में भगवान राम ने की थी नवरात्रि की शुरूआत ? भागवत पुराण में शारदीय नवरात्र का महत्‍व बह...