हर मंत्र के आगे ॐ क्यों लगाया जाता है??
क्या है इसका विज्ञान?
ॐ को प्रणव बीज भी कहा जाता है।
प्रणव को 'प्र' यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली 'ण' यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से 'प्र' अर्थात प्रकर्षेण, 'ण' अर्थात नयेत् और 'व:' अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।
ॐ को मंत्र के आगे लगाने से, मन्त्र का जनन और मृत अशौच का दोष दूर हो जाता है।
मन्त्र का अशौच
भारतीय संस्कृति में दो प्रकार के अशौच माने गये है ( १ ) जनन अशौच (२) मरण अशौच
प्रकृति में दो तरह का विस्फोट हुआ पहला सृष्टी के समय दूसरा संहार के समय। इनकी ऊर्जा विस्फोटिक शक्तियाँ भिन्न भिन्न होती है परन्तु यह विस्फोट विघटन प्रारंभ में व अन्त में अशुद्ध वातावरण भी पैदा करता है।
मंत्र जप करते समय भी प्रारंभ काल में एनर्जी फील्ड जब उर्ध्वगमन करता है तो हमारी ऊर्जा में विस्फोट होता है। जप समाप्ति के समय जैसे मशीन को रोकने पर गाड़ी के ब्रेक लगाने पर झटका लगता है अर्थात् प्रवाह रुक जाता है तो आंतरिक विस्फोट होता है इस तरह मंत्र को भी दो प्रकार का अशौच लगता है। जनन अशौच व अंत में मरण का अशौच लगता हैं।
इसलिये ऊर्जा बैलेंस करना बहुत ज़रूरी होता हैं।
निवारण
★ यदि माला प्रारंभ करने के पहले व माला पूरी होने पर 'ॐ' का उच्चारण करे तो ये अशौच दूर होता है।
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मंत्र जप के पहिले एवं अंत में गायत्री मंत्र का ॐ का मंत्र के साथ २१-२१ बार जप करने से भी जनन अशौच व मरणशौच दूर होता है।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा