Showing posts with label maa kali. Show all posts
Showing posts with label maa kali. Show all posts

Wednesday, March 22, 2023

Kali Kakaradi strot

Kali Kakaradi 108 Names | काली ककारादि शतनाम स्तोत्रम with English lyrics


महाकाली चेतना, वास्तविकता और अस्तित्व की आधारभूत देवी हैं | काली महाकाल की शक्ति है। महाकाली का स्वरुप समय और मृत्यु का स्वरुप है | तांत्रिक हिंदू शास्त्रों में महाकाली अग्रगणीय है | महाकाली तामस या जड़ता के बल का प्रतिनिधित्व करती है।


महाकाली समय की देवी है। महाकाली के साधक स्वत: ही अष्ट सिद्धियो की प्राप्ति कर लेते हैं | महाकाली के यह 108 नाम दिव्य और अद्वित्य हैं | इन 108 नामों का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से महाकाली की असीम कृपा प्राप्त होती है और साधक शीघ्र ही महाविद्या काली के दर्शन प्राप्त करता है | महाविद्या साधना में इन नामों का नियमित पठन लाभकारी माना जाता है |


https://youtu.be/DWkaWNUlw1E


Kali Kakaradi 108 Names are the divine hundreds of names of Mahavidya Kali. All of these wonderful names start with the word "K"and with a prefix "shree". Kali is the fearful and ferocious form of the mother goddess. Kali is represented with perhaps the fiercest features amongst all the world’s deities. She has four arms, with a sword in one hand and the head of a demon in another. The other two hands bless her worshippers. Kali is the Goddess of time and change. Kali is Adi Mahavidya, the primary Mahavidya. She is the first and the foremost among the Mahavidyas.


महाकाली चेतना, वास्तविकता और अस्तित्व की आधारभूत देवी हैं | काली महाकाल की शक्ति है। महाकाली का स्वरुप समय और मृत्यु का स्वरुप है | तांत्रिक हिंदू शास्त्रों में महाकाली अग्रगणीय है | महाकाली तामस या जड़ता के बल का प्रतिनिधित्व करती है।


महाकाली समय की देवी है। महाकाली के साधक स्वत: ही अष्ट सिद्धियो की प्राप्ति कर लेते हैं | महाकाली के यह 108 नाम दिव्य और अद्वित्य हैं | इन 108 नामों का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से महाकाली की असीम कृपा प्राप्त होती है और साधक शीघ्र ही महाविद्या काली के दर्शन प्राप्त करता है | महाविद्या साधना में इन नामों का नियमित पठन लाभकारी माना जाता है |


Kali Kakaradi 108 Names

काली ककारादि शतनाम स्तोत्रम


श्रीकाल्यै नमः ।

श्रीकपालिन्यै नमः ।

श्रीकान्तायै नमः ।

श्रीकामदायै नमः ।

श्रीकामसुन्दर्यै नमः ।

श्रीकालरात्रयै नमः ।

श्रीकालिकायै नमः ।

श्रीकालभैरवपूजिताजै नमः ।

श्रीकुरुकुल्लायै नमः ।

श्रीकामिन्यै नमः ।

श्रीकमनीयस्वभाविन्यै नमः ।

श्रीकुलीनायै नमः ।

श्रीकुलकर्त्र्यै नमः ।

श्रीकुलवर्त्मप्रकाशिन्यै नमः ।

श्रीकस्तूरीरसनीलायै नमः ।

श्रीकाम्यायै नमः ।

श्रीकामस्वरूपिण्यै नमः ।

श्रीककारवर्णनिलयायै नमः ।

श्रीकामधेनवे नमः ।

श्रीकरालिकायै नमः ।

श्रीकुलकान्तायै नमः ।

श्रीकरालास्यायै नमः ।

श्रीकामार्त्तायै नमः ।

श्रीकलावत्यै नमः ।

श्रीकृशोदर्यै नमः ।

श्रीकामाख्यायै नमः ।


श्रीकौमार्यै नमः ।

श्रीकुलपालिन्यै नमः ।

श्रीकुलजायै नमः ।

श्रीकुलकन्यायै नमः ।

श्रीकलहायै नमः ।

श्रीकुलपूजितायै नमः ।

श्रीकामेश्वर्यै नमः ।

श्रीकामकान्तायै नमः ।

श्रीकुञ्जरेश्वरगामिन्यै नमः ।

श्रीकामदात्र्यै नमः ।

श्रीकामहर्त्र्यै नमः ।

श्रीकृष्णायै नमः ।

श्रीकपर्दिन्यै नमः ।

श्रीकुमुदायै नमः ।

श्रीकृष्णदेहायै नमः ।

श्रीकालिन्द्यै नमः ।

श्रीकुलपूजितायै नमः ।

श्रीकाश्यप्यै नमः ।

श्रीकृष्णमात्रे नमः ।

श्रीकुलिशाङ्ग्यै नमः ।

श्रीकलायै नमः ।

श्रीक्रींरूपायै नमः ।

श्रीकुलगम्यायै नमः ।

श्रीकमलायै नमः ।

श्रीकृष्णपूजितायै नमः ।

श्रीकृशाङ्ग्यै नमः ।

श्रीकिन्नर्यै नमः ।

श्रीकर्त्र्यै नमः ।

श्रीकलकण्ठ्यै नमः ।

श्रीकार्तिक्यै नमः ।

श्रीकम्बुकण्ठ्यै नमः ।

श्रीकौलिन्यै नमः ।

श्रीकुमुदायै नमः ।

श्रीकामजीविन्यै नमः ।

श्रीकुलस्त्रियै नमः ।

श्रीकीर्तिकायै नमः ।

श्रीकृत्यायै नमः ।

श्रीकीर्त्यै नमः ।

श्रीकुलपालिकायै नमः ।

श्रीकामदेवकलायै नमः ।

श्रीकल्पलतायै नमः ।

श्रीकामाङ्गवर्धिन्यै नमः ।

श्रीकुन्तायै नमः ।

श्रीकुमुदप्रीतायै नमः ।

श्रीकदम्बकुसुमोत्सुकायै नमः ।

श्रीकादम्बिन्यै नमः ।

श्रीकमलिन्यै नमः ।

श्रीकृष्णानन्दप्रदायिन्यै नमः ।

श्रीकुमारीपूजनरतायै नमः ।

श्रीकुमारीगणशोभितायै नमः ।

श्रीकुमारीरञ्जनरतायै नमः ।

श्रीकुमारीव्रतधारिण्यै नमः ।


श्रीकङ्काल्यै नमः ।

श्रीकमनीयायै नमः ।

श्रीकामशास्त्रविशारदायै नमः ।

श्रीकपालखट्वाङ्गधरायै नमः ।

श्रीकालभैरवरूपिण्यै नमः ।

श्रीकोटर्यै नमः ।

श्रीकोटराक्ष्यै नमः ।

श्रीकाश्यै नमः ।

श्रीकैलासवासिन्यै नमः ।

श्रीकात्यायिन्यै नमः ।

श्रीकार्यकर्यै नमः ।

श्रीकाव्यशास्त्रप्रमोदिन्यै नमः ।

श्रीकामाकर्षणरूपायै नमः ।

श्रीकामपीठनिवासिन्यै नमः ।

श्रीकङ्किन्यै नमः ।

श्रीकाकिन्यै नमः ।

श्रीक्रीडायै नमः ।

श्रीकुत्सितायै नमः ।

श्रीकलहप्रियायै नमः ।

श्रीकुण्डगोलोद्भवप्राणायै नमः ।

श्रीकौशिक्यै नमः ।

श्रीकीर्तिवर्द्धिन्यै नमः ।

श्रीकुम्भस्तन्यै नमः ।

श्रीकटाक्षायै नमः ।

श्रीकाव्यायै नमः ।

श्रीकोकनदप्रियायै नमः ।

श्रीकान्तारवासिन्यै नमः ।

श्रीकान्त्यै नमः ।

श्रीकठिनायै नमः ।

श्रीकृष्णवल्लभायै नमः ।



Om Shrikalyai Namah.

Om Sri Kapalinya Namah.

Om Shrikantayai Namah

Om Kamdayai Namah.

Om Shri Kamasundaryai Namah 

Om Sri Kalaratriye Namah

Om Sri Kalikayai Namah.

Om Sri Kalbhairavpujitajai Namah

Om Sri Kurukullayai Namah.

Om Sir Kaminye Namah.

Om Shri Kamaniya Swabhavinye Namah.

Om Shrikulinaye Namah

Om Shrikulkartryai Namah.

Om Shrikulvartmaprakashinyai Namah.

Om Shrikasturirasnilayai Namah

Om Shree Kamyaye Namah.

Om Shri Kamaswaroopinyai Namah

Om Sri Kakkarvarnanilayayai Namah

Om Shrikamdhenve Namah 

Om Shrikaralikayai Namah

Om Shrikulkantayai Namah

Om Srikaralasyai Namah

Om Shrikamarttayai Namah.

Om Shrikalavatyai Namah

Om Shrikrishodaryai Namah.

Om Shri Kamakhyaye Namah

Om Shri Komaryai Namah

Om Shrikulpalinyai Namah

Om Shrikuljayi Namah.

Om Shrikulkanyaye Namah

Om Shrikalhayai Namah.

Om Shrikulpujitayai Namah

Om Shri Kameshwarya Namah.

Om Shri Kamkantaye Namah

Om Shrikunjareshwargaminya.

Om Shri Kamadatryai Namah

Om Shrikamahartryai Namah

Om Shri Krishnaye Namah

Om Shrikapardinyai Namah.

Om Shree Kumudayai Namah.

Om Shri Krishna Dehayai Namah.

Om Sri Kalindyai Namah.

Om Shrikulpujitayai Namah

Om Shri Kashyapyai Namah.

Om Shri Krishna Matre Namah.

Om Shrikulishangyai Namah.

Om Shrikalayai Namah.

Om Shri Krirm rupayai Namah

Om Shrikulgamyaye Namah

Om Shri Kamalayai Namah.

Om Shri Krishna Pujitaye Namah

Om Shrikrishangyai Namah.

Om Śrīkinnāryai Namah.

Om Shrikartryai Namah.

Om Shri Shrikalkanthye Namah

Om Shri Karthikyai Namah

Om Sri Kambukanthyai Namah

Om Śrīkaulinyai Namah.

Om Shri Kumudayai Namah.

Om Shrikaamjivinyai Namah.

Om Shri Srikulastriyai Namah

Om Shrikirtikayai Namah

Om Shrikrityayi Namah.

Om Shrikirtyai Namah.

Om Shrikulpalikaye Namah

Om Shri Kamdevkakayai Namah

Om Sri Kalpalataye Namah

Om Shrikamangavardhinya.

Om Shrikuntayai Namah

Om Shrikumudpreetayai Namah.

Om Shrikadambakusumotsukayai Namah.

Om Shrikadambinyai Namah.

Om Shri Kamalinya Namah.

Om Shrikrishnanandpradayinyai Namah.

Om Shri Kumari Pujanratayai Namah

Om Shrikumariganashobhitayai Namah

Om SrikumariRanjanarataye Namah 

Om Shrikumarivratdharinya Namah

Om Shrikankalyai Namah

Om Shrikamaniyai Namah.

Om Shri Kamshastra Visharadayai Namah

Om Shri Kapalkhatwangdharayai Namah

Om Shri ShrKalbhairavroopinyai Namah

Om Shri Shrikotaryai Namah

Om Shri Kotraakshyai Namah

Om Shri Shrikashyai Namah.

Om Sri Kailasavasinya Namah

Om Shrikatyayinya Namah.

Om Shrikaryakaryai Namah

Om Shri Kavyasastra Pramodinya Namah.

Om Shri Kamakarshanrupayai Namah

Om Shrikampeeth Nivasiniye Namah

Om Srikankinyai Namah

Om Shrikaakinyai Namah

Om Shrikridayai Namah.

Om Shrikutsitaye Namah.

Om Shri Kalahapriyai Namah

Om Shrikundagolodbhavapranayai Namah.

Om Shri Kaushikya Namah

Om Shrikirtivardhiniyai Namah

Om Shreekumbhastanyai Namah.

Om Shri Katakshayai Namah

Om Shrikavyayai Namah.

Om Shri Shrikoknadpriya Namah

Om Shrikantaravasinya Namah

Om Srikantyai Namah.

Om Srikathinayai Namah

Om Shrikrishnavallabhai Namah.

Wednesday, February 17, 2021

BHADRAKALI STUTI

श्रीअर्जुन कृत श्री भद्रकाली स्तुति


जब महाभारत युद्ध अपनी चरम सिमा पर था। तब पांडवो को चिंतित देख *जगदगुरु परमात्मा श्री कृष्ण* ने सदा की भांति सभी पाण्डवो को श्री भगवती की शरण में जाने का आदेश दिया तब स्वयं श्री कृष्ण धर्मराजयुधिष्ठीर अर्जुन सहित~ *नलखेड़ा श्री बगलामुखी पीठ* नकुल सहदेव *माँ एकविरा जी बड़नगर* और भीमसेन जी *सातरुंडा माँकवलका जी* की साधना में रत हो गए। भगवती की शक्तियो ने अपने सभी साधको को दर्शन दिया और कहा युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व राजराजेश्वरी भद्रकाली के भी आपको दर्शन होंगे। युद्ध भूमि में अर्जुन को जब शत्रुओ की विशाल सेना देख कर भय व्याप्त होने लगा तब श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से ने पराम्बा राज राजेश्वरी की शरण में पूर्ण शरणागति की आज्ञा प्रदान करी ।
योगेश्वर श्री कृष्ण के वचनो से अर्जुन का मन स्थिर हो गया उसने कहा में युद्ध के लिये प्रस्तुत हूँ। हे माधव यदि अब आपकी आज्ञा हो युद्ध का शंखनाद किया जाये। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा नही गुडाकेश अभी युद्ध के शंखनाद के प्रारम्भ के पूर्व हमारी इष्टदेवी अपने भक्तो की दुर्गती नाश करके पापियो का संहार करने वाली श्री भद्रकाली की शरण में चले उनका स्मरण कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करो। तब अर्जुन रथ से उतर कर पवित्र हो दोनों हाथ जोड़कर अपने भृकुटि विलास मात्र से चराचर जगद् को क्रियान्वित करने वाली भगवती की स्तुति करने लगे उनकी रोमावलिया पुलकित हो रही थी। नेत्रो में प्रेमाश्रु छलक रहे थे । और कण्ठ रुंधा जा रहा था ।


~ अर्जुन उवाच ~

नमस्ते सिद्ध सेनानी , आर्ये मन्दर वासिनी। कुमारी काली कपाली कपिलै कृष्ण पिंगले।।
भद्रकाली नमस्तुभ्यं महाकाली नमोस्तुते। चण्डी चण्डे नमस्तुभ्यं तारिणी वर वर्णिनि ।।
कात्यायनि महाभागे कराली विजये जये। शिखि पिच्छ ध्वज धरे नाना भरण भूषिते।।
अटूट शूल प्रहरणे खड्ग खेटक धारिणी। गोपेन्द्रस्यानुजे ज्येष्ठे नन्द गोप कुलोद्भवे।।
महिषासृक् प्रिये नित्ये कौशिकी पीत वासिनी। अट्टहासे कोक मुखे नमस्तेस्तु रणप्रिये।।
उमे शाकम्भरी श्वेते कृष्णे कैटभ नाशिनी । हिरण्याक्षी विरुपाक्षि सुधारात्रि नमोस्तुते।।
वेद श्रुति महापुण्ये ब्रह्मण्ये जातवेदसी। जम्बू कटक चैत्येषु नित्यं सन्निहितालये।।
त्वं ब्रह्म विद्यानां महानिद्रा च देहिनां। स्कंदमातर्भगवती दुर्गे कान्तार वासिनी।।
स्वाहाकार स्वधा चैव कला काष्ठा सरस्वती । सावित्री वेद माता च तथा वेदांत उच्चते।।
स्तुतासि त्वं महादेवी विशुद्धेनान्तरामना । जयो भवतु में नित्यं त्वद्प्रसादात् रणाजीरे।।
कान्तार भय दुर्गेषु भक्तानां चालयेषु च। नित्यं वसति पाताले युद्धे जयसी दानवान ।।
त्वं जम्भिनी मोहिनी च माया ह्रीं श्रीस्ततेव् च।सन्ध्या प्रभावती चैव सावित्री जननी तथा ।।
तुष्टि पुष्टी धृति दीप्ती चन्द्रादित्य विवर्धिनी।भूतिर्भूति मतां सौख्यः विक्ष्यसे सिद्ध चारणे।।

अर्जुन की स्तुति से प्रसन्न होकर *जगदम्बा श्रीमहादुर्गा* आकाश में प्रगट हो गयी और अर्जुन को कहा "
हे पांडुनन्दन वत्स कृष्ण और अर्जुन तुम और कृष्ण साधारण मानव नही हो तुम दोनों ने मेरी ही आज्ञा से इन दुष्टो का विनाश करके पृथ्वी का भार उतारने के लिये ही शरीर धारण किया हे । तुम दोनों नर, नारायण , हो। तुम दोनों ने पूर्व जन्म में भी विशाला क्षेत्र【बद्रीविशाल】 क्षेत्र में मेरा बहूत तप करके मेरी अनन्य भक्ति के द्वारा मुझे पहले ही प्राप्त कर चुके हो। और तुम दोनों ने मेरी आज्ञा से ही भूमि का भार उतारने के लिये ही अवतार लिया हे। तुम्हे अधिक तप की आवश्यकता नही हे। और इस कार्य को पूर्ण कर के तुम दोनों मुझे पुनः प्राप्त कर लोगे पुनः मेरी साधना तप भक्ति तुमको प्राप्त होगी इसमें कोई भी सन्देह नही हे। और मेरी कृपा होने के कारण यह कोरव यौद्धा कौरव सेना और नारायणी सेना आदि तो बहुत ही तुच्छ हे । अगर सभी देवताओ को लेकर देवराजइंद्र भी युद्ध करने आ जाये साक्षात् वो भी तुम दोनों को युद्ध में परास्त नही कर सकता। तुम दोनों बस निमित्त बन जाओ , में स्वयं ही तुम समस्त वीरो के अन्तःकरण में विराजित हो कर इन दुष्ट पापियो का संहार करुँगी। और भगवती भद्रकाली उसी क्षण कृष्णार्जुन को वर विजय् का वर देकर अंतर्ध्यान हो गयी।

क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना?

 क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना? क्या सच में भगवान राम ने की थी नवरात्रि की शुरूआत ? भागवत पुराण में शारदीय नवरात्र का महत्‍व बह...