Tuesday, March 23, 2021

DEATH IS THE DOOR FOR ULTIMATE TRANSFORMATION

मृत्यु है द्वार रूपांतरण का


एकनाथ के पास एक व्यक्ति आता था। सत्संग को। कई बार आया, कई बार गया। एकनाथ ने एक दिन उससे पूछा कि मुझे ऐसा लगता है तू कुछ पूछना चाहता है, पूछ नहीं पाता। कोई लाज, कोई लज्जा, कोई संकोच तुझे रोक लेता है। आज तू पूछ ही ले। आज और कोई है भी नहीं, सुबह-सुबह तू जल्दी ही आ गया है।

उस व्यक्ति ने कहा, आपने पहचाना तो ठीक, पूछना तो मैं चाहता हूं। एक छोटी सी बात, और संकोचवश नहीं पूछता हूं। वह बात यह है कि आप भी मनुष्य जैसे मनुष्य हैं, हमारे ही जैसे हड्डी-मांस-मज्जा के बने हैं, आपके जीवन में कभी पद की, प्रतिष्ठा की कामना नहीं उठती? आपके जीवन में कभी लोभ की, क्रोध की अग्नि नहीं भड़कती? आपके जीवन में कभी काम की, माया की वासनाएं नहीं उठतीं? यही पूछना है। आप इतने पवित्र मालूम होते हो, इतने निर्दोष; जैसे सुबह-सुबह खिला हुआ फूल ताजा होता है, ऐसे आप ताजे लगते हो; जैसे सुबह-सुबह सूरज की किरणों में चमकती ओस, ऐसे आप निर्दोष लगते हो; इसलिए पूछते डरता हूं, मगर यह भी संकोच तोड़ना ही पड़ेगा, पूछना ही पड़ेगा, बिना पूछे मैं न रह सकूंगा, मेरी नींद हराम हो गई है। यह प्रश्न मेरे मन में गूंजता ही रहता है। यह भी शंका उठती है, संदेह उठता है कि हो सकता है यह सब निर्दोषता ऊपर-ऊपर हो और भीतर वही सब कूड़ा-करकट भरा हो जो मेरे भीतर भरा है।

एकनाथ ने उसकी बात सब सुनी और कहा कि प्रश्न तेरा सार्थक है। लेकिन इसके पहले कि मैं उत्तर दूं, एक और जरूरी बात बतानी है। कहीं ऐसा न हो कि उत्तर देने में वह जरूरी बात बताना भूल जाऊं। तू जब बात कर रहा था तो तेरे हाथ पर मेरी नजर गई, देखा तेरी उम्र की रेखा समाप्त हो गई है। सात दिन के भीतर तू मर जाएगा। अब तू पूछ।

वह आदमी उठ कर खड़ा हो गया। उसके पैर डगमगा गए। उसकी छाती धड़क गई। श्वासें रुक गई होंगी। एक क्षण को हृदय ने धड़कन बंद कर दी होगी। उसने कहा: मुझे कुछ पूछना नहीं, मुझे घर जाना है। एकनाथ ने कहा: अभी नहीं मरना है, सात दिन जिंदा रहना है, अभी बहुत देर है, सात दिन में घर पहुंच जाएगा, अपने प्रश्न को पूछा, उसका उत्तर तो ले जा! उसने कहा, भाड़ में जाए प्रश्न और भाड़ में जाए उत्तर। मुझे न प्रश्न से मतलब है, न उत्तर से, तुम्हारी तुम जानो, मैं चला घर! जवान आदमी था। अभी जब मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो उसके पैरों में बल था, अब जब लौट रहा था तो दीवाल का सहारा लेकर उतरा। हाथ-पैर कंप रहे थे, आंखें धुंधली हो रही थीं। सात दिन! एकनाथ की बात पर संदेह भी नहीं किया जा सकता। यह आदमी कभी झूठ बोला नहीं। आज क्यों बोलेगा? बार-बार हाथ देखता था। भागा घर की तरफ। रास्ते में कौन मिला, किसने जयराम जी की, किसने नहीं की, कुछ समझ आया नहीं। धुआं-धुआं छाया था। सात दिन बाद मौत हो तो आही गई मौत। सात दिन में देर कितनी लगेगी! ये दिन आए और ये दिन गए!

घर पहुंच कर बिस्तर से लग गया। पत्नी-बच्चों ने पूछा: हुआ क्या? थोड़ी-बहुत देर छिपाया, फिर छिपा भी नहीं सका..ये बातें छिपाई जा सकतीं नहीं। बताना ही पड़ा। रोना-धोना शुरू हो गया। घर में चूल्हा न जला। सात दिन में उस आदमी की हालत ऐसी खराब हो गई कि हड्डी-हड्डी हो गया। आंखें धंस गयीं। और बार-बार एक ही बात पूछता था, कितना समय और बचा?

आखिरी दिन सूरज ढलने के समय एकनाथ द्वार पर आकर खड़े हुए। सारे परिवार के लोग उनके चरणों में गिर पड़े, रोने लगे। एकनाथ ने कहा: मत रोओ, जरा मुझे भीतर आने दो। वह आदमी तो जैसे एकनाथ को पहचाना ही नहीं। जिंदगी भर से सत्संग करता था, मगर इस मौत ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया। एकनाथ ने कहा, पहचाने कि नहीं? मैं हूं एकनाथ।

उस आदमी ने आंखें खोलीं और कहा: हां, कुछ-कुछ याद आती है। आप कैसे आए, किसलिए आए? एकनाथ ने कहा: यह पूछने आया हूं, सात दिन में पाप का कोई विचार उठा? काम-क्रोध, लोभ-मोह, सात दिन में कोई लपटें उठीं?

उस आदमी ने कहा, आप भी क्या मजाक करते हैं! मौत सामने खड़ी हो तो जगह कहां कि काम उठे, लोभ उठे, क्रोध उठे, मोह उठे? जिनसे झगड़ा था उनसे माफी मांग ली। जिन पर मुकदमे चला रहा था, उनसे क्षमा मांग ली। अब क्या शत्रुता! जब मौत ही आ गई, तो किससे शत्रुभाव! सात दिन में ख्याल ही नहीं आया कि पैसा जोड़ना है। सात दिन में वासना तो जगी ही नहीं। काम तो तिरोहित हो गया। ऐसा अंधकार छाया था चारों तरफ, मौत ऐसी भयभीत कर रही थी कि आप भी क्या सवाल पूछते हैं! यह कोई सवाल है!

एकनाथ ने कहा: उठ, अभी तुझे मरना नहीं है। वह तो मैंने तेरे सवाल का जवाब दिया था। ऐसी ही मुझे मौत दिखाई देती है..निश्चित, सुनिश्चित। सात दिन बाद नहीं तो सत्तर वर्ष बाद सही। पर सात दिन में, सत्तर वर्ष में फर्क क्या है? सात दिन गुजर जाएंगे, सत्तर वर्ष भी गुजर जाते हैं। तेरी मौत अभी आई नहीं। यह मैंने तेरे प्रश्न का उत्तर दिया। अब तू उठ!

लेकिन उस दिन से उस आदमी के जीवन में क्रांति हो गई। मौत तो नहीं आई, लेकिन एक आर्थ में वह आदमी मर गया, और एक अर्थ में नया जन्म हो गया। इस नये जन्म का नाम ही धर्म है। इस नये जन्म को मैं संन्यास कहता हूं।

सब कुछ वही था, बाहर वही रहेगा..यही पौधे होंगे, यही लोग होंगे, यही बाजार होगा, यही दुकान होगी, यही मकान होंगे, लेकिन भीतर कुछ क्रांति हो जाएगी, रूपांतरण हो जाएगा। और उस क्रांति का मूल आधार मृत्यु है।

जो बुद्धिहीन हैं, वे मृत्यु को देखते नहीं। आंख मूंदे रखते हैं। पीठ किए रहते हैं। जीवन के सबसे बड़े सत्य के प्रति पीठ किए रहते हैं। सुनिश्चित जो है, उसको झुठलाए रहते हैं। अपने मन को समझाए रहते हैं कि हमेशा कोई और मरता है, मैं नहीं मरूंगा; मेरी कहां मौत, अभी कहां मौत! अभी तो बहुत समय पड़ा है। अभी तो मैं जवान हूं। अपने को भुलाए रखते हैं, मरते-मरते दम तक भी भुलाए रखते हैं। जो बिस्तर पर पड़े हैं अस्पतालों में, मरने की घड़ियां गिन रहे हैं, वे भी अभी इस आशा में हैं कि बच जाएंगे। अभी उनकी कामनाओं का अंत नहीं, वासनाओं का अंत नहीं। अभी भी हिसाब-किताब बिठा रहे हैं कि अगर बच गए तो क्या करेंगे।

ओशो

Sunday, March 21, 2021

PAST LIFE STORY OF SANYSAYI AT THE TIME OF BUDDHA

बुद्ध और एक सन्यासी के पिछले जन्म की कथा


बुद्ध एक गांव में ठहरे हैं। उस गांव के सम्राट के बेटे ने आकर दीक्षा ली। उस सम्राट के लड़के से कभी किसी ने न सोचा था कि वह दीक्षा लेगा। लंपट था, निरा लंपट था। बुद्ध के भिक्षु भी चकित हुए। बुद्ध के भिक्षुओं ने कहा, इस निरा लंपट ने दीक्षा ले ली? इस आदमी से कोई आशा नहीं करता था। यह हत्या कर सकता है, मान सकते हैं। यह डाका डाल सकता है, मान सकते हैं। यह किसी की स्त्री को उठाकर ले जा सकता है, मान सकते हैं। यह संन्यास लेगा, यह कोई सपना नहीं देख सकता था! इसने ऐसा क्यों किया? बुद्ध से लोग पूछने लगे।

बुद्ध ने कहा, मैं तुम्हें इसके पुराने जन्म की कथा कहूं। एक छोटी-सी घटना ने आज के इसके संन्यास को निर्मित किया है–छोटी-सी घटना ने। उन्होंने पूछा, कौन-सी है वह कथा? तो बुद्ध ने कहा…।

और बुद्ध और महावीर ने उस साइंस का विकास किया पृथ्वी पर, जिससे लोगों के दूसरे जन्मों में झांका जा सकता है; किताब की तरह पढ़ा जा सकता है।

तो बुद्ध ने कहा कि यह व्यक्ति पिछले जन्म में हाथी था, आदमी नहीं था। और तब पहली दफा लोगों को खयाल आया कि इसकी चाल-ढाल देखकर कई दफा हमें ऐसा लगता था कि जैसे हाथी की चाल चलता है। अभी भी, इस जन्म में भी उसकी चाल-ढाल, उसका ढंग एक शानदार हाथी का, मदमस्त हाथी का ढंग था।


बुद्ध ने कहा, यह हाथी था पिछले जन्म में। और जिस जंगल में रहता था, हाथियों का राजा था। तो जंगल में आग लगी। गर्मी के दिन थे, भयंकर आग लगी आधी रात को। सारे जंगल के पशु-पक्षी भागने लगे, यह भी भागा। यह एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने को एक क्षण को रुका। भागने के लिए एक पैर ऊपर उठाया, तभी एक छोटा-सा खरगोश वृक्ष के पीछे से निकला और इसके पैर के नीचे की जमीन पर आकर बैठ गया। एक ही पैर ऊपर उठा, हाथी ने नीचे देखा, और उसे लगा कि अगर मैं पैर नीचे रखूं, तो यह खरगोश मर जाएगा। यह हाथी खड़ा-खड़ा आग में जलकर मर गया। बस, उस जीवन में इसने इतना-सा ही एक महत्वपूर्ण काम किया था, उसका फल आज इसका संन्यास है।

रात वह राजकुमार सोया। जहां पचास हजार भिक्षु सोए हों, वहां अड़चन और कठिनाई स्वाभाविक है। फिर वह बहुत पीछे से दीक्षा लिया था, उससे बुजुर्ग संन्यासी थे। जो बहुत बुजुर्ग थे, वे भवन के भीतर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे भवन के बाहर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे रास्ते पर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे और मैदान में सोए। उसको तो बिलकुल आखिर में, जो गली राजपथ से जोड़ती थी बुद्ध के विहार तक, उसमें सोने को मिला। रात भर! कोई भिक्षु गुजरा, उसकी नींद टूट गई। कोई कुत्ता भौंका, उसकी नींद टूट गई। कोई मच्छर काटा, उसकी नींद टूट गई। रातभर वह परेशान रहा। उसने सोचा कि सुबह मैं इस दीक्षा का त्याग करूं। यह कोई अपने काम की बात नहीं।

सुबह वह बुद्ध के पास जाकर, हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। बुद्ध ने कहा, मालूम है मुझे कि तुम किसलिए आए हो। उसने कहा कि आपको नहीं मालूम होगा कि मैं किसलिए आया हूं। मैं कोई साधना की पद्धति पूछने नहीं आया। क्योंकि कल मैंने दीक्षा ली, आज मुझे साधना की पद्धति पूछनी थी; उसके लिए मैं नहीं आया। बुद्ध ने कहा, वह मैं तुझसे कुछ नहीं पूछता। मुझे मालूम है, तू किसलिए आया। सिर्फ मैं तुझे इतनी याद दिलाना चाहता हूं कि हाथी होकर भी तूने जितना धैर्य दिखाया, क्या आदमी होकर उतना धैर्य न दिखा सकेगा?

उस आदमी की आंखें बंद हो गईं। उसको कुछ समझ में न आया कि हाथी होकर इतना धैर्य दिखाया! यह बुद्ध क्या कहते हैं, पागल जैसी बात! उसकी आंख बंद हो गई।

लेकिन बुद्ध का यह कहना, जैसे उसके भीतर स्मृति का एक द्वार खुल गया। आंख उसकी बंद हो गई। उसने देखा कि वह एक हाथी है। एक घने जंगल में आग लगी है। एक वृक्ष के नीचे वह खड़ा है। एक खरगोश उसके पैर के नीचे आकर बैठ गया। इस डर से वह भागा नहीं कि मेरा पैर नीचे पड़े, तो खरगोश मर जाए। और जब मैं भागकर बचना चाहता हूं, तो जैसा मैं बचना चाहता हूं, वैसा ही खरगोश भी बचना चाहता है। और खरगोश यह सोचकर मेरे पैर के नीचे बैठा है कि शरण मिल गई। तो इस भोले से खरगोश को धोखा देकर भागना उचित नहीं। तो मैं जल गया।

उसने आंख खोली, उसने कहा कि माफ कर देना, भूल हो गई। रात और भी कोई कठिन जगह हो सोने की, तो मुझे दे देना। अब मैं याद रख सकूंगा। उतना छोटा-सा, उतना छोटा-सा काम, क्या मेरे जीवन में इतनी बड़ी घटना बन सकता है?

सब छोटे बीज बड़े वृक्ष हो जाते हैं। चाहे वे बुरे बीज हों, चाहे वे भले बीज हों, सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं–सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं।

हमें चूंकि कोई पता नहीं होता कि जीवन किस प्रक्रिया से चलता है, इसलिए कठिनाई होती है। हमें कोई पता नहीं होता कि किस प्रक्रिया से चलता है।

यह बीज पिछले जन्मों का है। यह कहीं पड़ा रहता है, चुपचाप प्रतीक्षा करता है। जैसे बीज गिर जाता है, फिर वर्षा की प्रतीक्षा करता है। महीनों बीत जाते हैं धूल में, धंवास में उड़ते, हवाओं की ठोकरें खाते, फिर वर्षा की प्रतीक्षा चलती है। फिर कभी वर्षा आती है। शायद इन आठ महीनों में बीज भी भूल गया होगा कि मैं कौन हूं। बीज को पता भी कैसे होगा कि मेरे भीतर क्या पैदा हो सकता है। फिर वर्षा आती है, बीज जमीन में दब जाता है और टूटकर अंकुर हो जाता है, तभी बीज को पता चलता है। बीज भी चौंकता होगा; चौंककर कहता होगा कि मैं सूखा-साखा सा, मुझमें इतनी हरियाली छिपी थी! मैं सूखा-साखा सा, कंकड़-पत्थर मालूम पड़ता था देखने पर, मुझमें ऐसे-ऐसे फूल छिपे थे! बीज को भी भरोसा न आता होगा।

ओशो


Thursday, March 11, 2021

SECRET SHIVA MANTRA TO ERADICATE ALL OBSTACLES

नारायणोपनिषद में कहा गया है कि, एक ही अव्ययात्मा महादेव की निम्न 5 कलाये है। 
1- आनंद
2- विज्ञान
3- मन
4- प्राण
5- वाक्

इसमें आनंद कला युक्त मृत्युंजय शिवजी है। मृत्युंजय मन्त्र के प्रकाशात्मक वर्ण विभीन्न शक्ति से मिलकर जीवन को सबल औए सुरक्षित बनाती है।

विलोमाक्षर मृत्युंजय मंत्र प्रयोग

मृत्युंजय मंत्र चमत्कारी एवं शक्तिशाली मंत्र है। जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझाने में यह सहायक है। अगर मन में श्रद्धा हो तो कठिन समस्याएं भी इससे सुलझ जाती हैं। किसी ग्रह का दोष जीवन में बाधा पहुंचा रहा है तो यह मंत्र उस दोष को दूर कर देता है। ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, रोग, जमीन-जायदाद का विवाद, हानि की सम्भावना या धन-हानि हो रही हो, वर-वधू के मेलापक दोष, घर में कलह, सजा का भय या सजा होने पर, अपने समस्त पापों के नाश के लिए महामृत्युंजय या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया या कराया जा सकता है। 

मंत्र जप में विशेष चैतन्य लाने के लिए और उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए विलोमाक्षर मंत्र का प्रयोग किया जाता है। 

प्रयोग विधी


निम्न मंत्र का 108 बार जाप नित्य करे। 

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय
माम्रतात् ।।
ॐ त् ता मृ मा य क्षी र्मु त्यो मृ न् ना न्ध ब व मि क रू र्वा उ।
म् न र्ध व ष्टि पु न्धिं ग सु हे म जा य कं म्ब त्र्य ।।


आप चाहे तो इस मंत्र से अभिमन्त्रित जल पीड़ित व्यक्ति को पिला सकते है। इसके अभिमन्त्रित जल को घर मे छिड़क सकते है। 


विवेक 
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

Monday, March 8, 2021

EASY REIKI TECHNIQUE FOR CLEANSING THE BODY PARTS


Atma Namaste dear divine souls,

Today I m writing simple and wonderful technique for cleansing your body with the power symbol(CKR). Apply this wonderful technic and give me feedback.
Vivek

Close your eyes and ask how many Power symbol I need to to clear, cleanse and refresh your eyes. When u have given a number, then; mentally draw a power symbol and say its name three times, then say that u want (say the number u were given) power symbol to go into your eyes to clear, cleanse and refresh them physically, mentally ,emotionally and spiritually. Do the same for other organs in the body, such as, sinuses, ear, nose, throat, lungs, spleen, liver, blood, pancreas.

Do this everyday for 21 days Each day you will notice that the number will get lower until one day you will not get any number, this means the organ does not need cleansing for the day. Apply this and give me your divine feedback.

Saturday, March 6, 2021

EMBRACING YOUR EXPERIENCE- A KEY ELEMENT IN HEALING


Atma namste dear divine soul, Most of us welcome pleasurable experience and resist unpleasant ones, but the mind tends to resist any feeling that's overwhelming or threatening. There are dozens of excellent strategies for not experiencing an unwanted experience or not feeling an unpleasant feelings such as the following, supressing, dissociating, distracting and etc.

Vivek
Do Any of these strategies feel familiar to you? Your willingness to experience resisted experience is the key to clearing up what's in your way. It is the way out of pain and the way back to freedom, health and happiness.
EMBRACING YOUR EXPERIENCE - A KEY ELEMENT IN HEALING
If you allow yourself to experience something fully, it will move through you, complete its purpose, and disappear back into nonexistence. Here is a set of little known rules that can transform your life by eliminating the feeling of being stuck.
1- If you are experiencing or feeling something you don't want to feel, embrace it instead and feel it fully, just as it is. Within sixty seconds, it will disappear completely or change in some way.
2. If the experience disappear, allow it to be gone. If you want it ti come back, you can always re- create it later..
3- If it changes in some wat, feel the new experience fully. Within sixty seconds, it will disappear completely or change in some way.
4- If you want an experience to go away completely, repeat step 3 until the experience is completely gone.
Try this and give me feedback.
Vivek
Infinite love
Infinite wisdom

ANCIENT PRINCIPLE OF HEALING FROM THE HAWAIIN




Atma namste dear 
divine soul. Here is a secret principles of hawaiian that applies to all human beings universally,and Appling these will also help us improving our spiritual life too.

ANCIENT PRINCIPLE OF HEALING FROM THE HAWAIIAN.
Vivek
Huna is a Hawaiian word meaning "secret," but it also refers to the esoteric wisdom of Polynesia. Kupua is another Hawaiian word and it refers to a specialized healer who works with the powers of the mind and the forces of nature.
THE SEVEN PRINCIPLES
The basic assumptions of Huna are these:
1. The World Is What You Think It Is.
2. There are no limits.
3. Energy Flows Where Attention Goes.
4. Now Is The Moment Of Power.
5. To Love Is To Be Happy With (someone or something).
6. All Power Comes From Within.
7. Effectiveness Is The Measure Of Truth.
THE THREE SELVES (or FOUR)
Another set of assumptions used in Huna is that human behavior and experience can be explained and changed through the interaction of three (sometimes four) selves, aspects or functions:
1. The High Self (Kane, Aumakua), inspires.
2. The Conscious Self (Lono) imagines.
3. The Subconscious Self (Ku) remembers.
4. The Core Self (Kanaloa) wills.
The Four Levels of Reality
A third set of assumptions coming from the kupua tradition divides all experience into four levels or frameworks of beliefs about reality which can be summarized as follows:
1. Everything is objective (Scientific reality).
2. Everything is subjective (Psychic reality).
3. Everything is symbolic (Shamanic reality).
4. Everything is holistic (Mystical reality).
The kupua (Hawaiian shaman) learns to move in and out of these realities in order to change experience more effectively.
Vivek
Infinite love
Infinite wisdom

SECRETS OF MANTRA MEDITATION


Atma Namaste ,In successful Mantra meditation, Mind dissolves in Buddhi and Buddhi dissolves in Chitta. Chitta dissolves in the Self, Witness or I-Consciousness.

This is essential for proper meditation. This sequential process has four parts to it: meditation by the mind, chanting of mantra by Buddhi, contemplation by Chitta, eventual dissolution in the Self. It goes from thought-initiation to application to contemplation to dissolution.
Chitta keeps you in the 'groove' . You need Chitta to keep meditation, concentration and contemplation in sync. Mind is a mechanical meditator; Buddhi is a fickle meditator; Chitta is a serene meditator. Your aim is to graduate to and dissolve in Chitta meditation and the self. Mind meditation and Buddhi meditation are out-bound meaning the thoughts are out-bound in the world of happenings; you are in the world of Nama and Rupa, names and forms. Chitta meditation is inbound in the sense it is in step with the Atman, the Inner Soul, the Witness. At this juncture the Chitta goes into Smrti mode (remembrance) and engages in deep contemplation.
For successful Mantra Meditation, an aspirant must have the following qualities.
Santi = Serenity. Mind must be brought under control and trained not to chase after sense-objects under the false belief that they provide happiness.
Dantah = Control of Sense-organs. One must strive to prevent the sense organs from exploring the world of sense objects and impinging on the mind with sensual experiences.
Param uparatah = Withdrawal of mind. Mind is trained to forget the sense enjoyments of the past and desist from fancied sensual imageries.
Shanti Yuktah = forbearance. One should train oneself not to be disturbed and distracted by frustrations of daily living.

क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना?

 क्या भगवान राम ने भी की थी तांत्रिक उपासना? क्या सच में भगवान राम ने की थी नवरात्रि की शुरूआत ? भागवत पुराण में शारदीय नवरात्र का महत्‍व बह...