सभी दिव्यात्माओं को आत्मनमन, आपके सामने एक चमत्कारी स्त्रोत पोस्ट कर रहा, जिसका नित्य सस्वर एक पाठ भी नर्मदेश्वर या अन्य शिव लिंग के पास किया जाये तो अकाल मृत्यु टालने वाला होता है, और रोगी के सामने सस्वर किया जाये तो शीघ्र रोग मुक्ति होने लगती है।
विवेक
कालमृत्यु निवारक अमोघ मृत्युंजय स्त्रोत
महर्षि मृकुंड को जब सन्तान प्राप्ति नही हुई तो उन्होंने भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए तपस्या की । ऋषि की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए । ऋषि से उन्होंने वर मांगने के लिए कहा । ऋषि मृकुंड ने सन्तान की इच्छा व्यक्त की । भगवान शिव ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में पुत्र नही है मगर तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर में तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर रहा हूं, तुम्हारे पास दो विकल्प है जिनमे से एक तुम चुन सकते हो । एक ऐसा पुत्र जो ज्ञानी तो होगा पर मात्र 16 वर्ष की आयु तक जीवित रहेगा या एक ऐसा पुत्र जो दिर्घायु तो होगा पर अल्पज्ञ होगा । ज्ञानी ऋषि ने अल्पायु मगर ज्ञानवान पुत्र का चयन किया ।
समय गुजरा तथा उनके यहाँ एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया । बालक का नाम रखा मार्कंडेय । मार्कंडेय ने अल्पायु में ही सभी प्रकार का ज्ञान अर्जित कर लिया । वह दिन भी आ गया जिस दिन उसकी 16 वर्ष की आयु पूर्ण हो रही थी । सुबह से ही माता पिता की आँखों से आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे कि आज उनका पुत्र उनसे छिन जायेगा । मार्कण्डेय ने जानना चाहा कि ऐसा क्यों हो रहा है कि उसके तत्वज्ञानी माता पिता का रुदन निरंतर जारी है । तब पिता ने उसे सब कुछ बताया । भगवान शिव का साधक मार्कण्डेय सहज भाव से उठा तथा नदी तट पर जाकर पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर अंतिम बार पूजन करने ही जा रहा था कि यमराज का आगमन हो गया । उन्होंने अपने यमपाश फेककर मार्कण्डेय को बाँध लिया तथा उसे ले जाने के लिए खीचने लगे । मार्कण्डेय ने विनती की कि ' हे यमराज मुझे अपनी अंतिम शिवाराधना पूर्ण कर लेने दीजिये, फिर में आपके साथ चला चलूँगा', यमराज ने साफ इंकार कर दिया और पुन: उसे ले जाने के लिए खीचने लगे, उसी समय मार्कण्डेय ने भगवान की वंदना में एक स्तोत्र की रचना की जिसे चंद्रशेखराष्टक के नाम से जाना जाता है:-
स्तुति समाप्त होते ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए और यमराज की छाती पर लात मारकर परे धकेल दिया, यमराज ने कहा कि 'हे प्रभु में आपकी ही आज्ञा का पालन कर रहा था, आप ही ने इस बालक को 16 वर्ष की आयु प्रदान की थी', भगवान शिव ने कहा कि 'में इसे देवताओ के 16 वर्ष की आयु प्रदान करता हूं', इस प्रकार शिव कृपा से मार्कण्डेय की अकाल मृत्यु का शमन हुआ तथा उन्हें दीर्घायु प्राप्त हुयी । तब से अकाल मृत्यु के निवारण के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ उपाय माना जाता है ।
शिवरात्रि, श्रावण मास तथा सोमवार को इसका पाठ अकाल मृत्यु के निवारण के लिए किया जाता है । इसका पाठ स्वयं रोगी करे या फिर उसका कोई सम्बन्धी या साधक संकल्प लेकर कर सकता है यह महामृत्युंजय मंत्र के समान ही प्रभावशाली उपाय है ।
अमोघ मृत्युंजय स्त्रोत
चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर पाहिमाम । चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर रक्षमाम ।।
रत्नसानुशरासनं रजतादिशृंगनिकेतनं । सिंजनीकृत पन्नगेश्वरमच्युतानन सायकम ।।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयम त्रिदिवालयैरपिविंदतं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।1।।
चपादपुष्पगंधपदांबुजद्वय शोभितं । भाललोचन जातपावक द्ग्धमन्मथविग्रहम ।।
भस्मादग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।2।।
मत्त्वारण मुख्यचर्मकृतोत्तरीय मनोहरं । पंकजासन पद्मलोचनपुजिताघ्रिसरोरुहम ।।
देवसिंधु तरंग सीकर सिक्तशुभ्र जटाधरं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।3।।
यक्षराजसंख भगाक्षहरं भुजंगविभूषणम । शैलराजसुतापरिष्कृत चारुवामकलेवरम ।।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।4।।
कुण्डलीकृत कुण्डलेश्वर कुंडलं वृषवाहनं । नारदादि मुनीश्वरस्तुत वैभवं भुवनेश्वरं ।।
अंधकांधकमाश्रितामर पादपं शमनांतकं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।5।।
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं । दक्ष यज्ञ विनाशनं त्रिगुणात्मकम त्रिविलोचनम ।।
भुक्तिमुक्ति फलप्रदं सकलाधसंघनिर्वहणम । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।6।।
भक्तवत्सलमर्चित निधिमक्षयं हरिदंबरम । सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनुत्तम ।।
सोमवारिद भृहुताशन सोमपानिलखाकृति । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।7।।
विश्वसृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परं । संहरंतमपि प्रपंचमशेषलोक निवासिनम ।।
क्रीड़यंतमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितम । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।8।।
मृतयुभीत मृकुण्ड सुन कृतस्तवं शिवसन्निधौ, यत्र कुत्र च य: पठेन्नहि तस्य मृत्युभयं भवेत, पूर्णमायुररोगितामखिलार्थसंपदमादरम, चंद्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्ति प्रयत्नत: ।।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा
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