सूर्य हमारी चेतना का प्रतीक है, और ये दिन हम सब की चेतना को ऊपर उठाने का प्रतीक बने।
सौर तंत्र में रोगमुक्ति का बहुत सुंदर और सरल प्रयोग है, जो आप कभी भी कर सकते है।
रोगमुक्ति प्रयोग
सूर्य देव को परम् ब्रम्ह मानते हुए, उसमे ही सदाशिव का ध्यान किया जाता है। इस प्रयोग में अजपा मन्त्र का जाप किया जाता है, सूर्योदय के वक़्त। 'हंस:" ये दो अक्षर का अजपा मन्त्र, साधक के लिए कल्पवृक्ष जैसा है।
सबसे पहले, एक पात्र में जल भर कर रखें। और अजपा मन्त्र का ध्यान अर्धनारीश्वर सदाशिव के रूप में करे।
ध्यान मंत्र
उद्यद्भानु स्फुरित तडिदाकार मर्द्धाम्बिकेशं
पाशाभीती वरदपरशु संदधानम कराग्रे: ।
दिव्याकल्पैर्नवमनिम्ये: शोभितं विश्वमूलं
सौम्याग्नेयं वपुरवतु वश्चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं।
आधा अम्बिका और आधा सदाशिव के रूप में रहने वाले, सोम अग्नि देवता के स्वरूप वाले, सदाशिव हमारी रक्षा करे। जिनके शरीर का आधा भाग उदीयमान सूर्य के समान तथा आधा भाग चमकती हुई बिजली के समान शोभित हो रहा है, जिन्होंने आने हाथो में, पाश, अभय, वर, और परशु मुद्रा धारण की है और जो मणिमय विरचित नवीन आभूषणों से विभूषित है, जो विश्व के एक मात्र मूल है, चन्द्रमा को अपने जटाजूट में धारण किये हुए है और त्रिनेत्र है।
इस प्रकार से ध्यान करने के बाद
अपने बांये हाथ से पात्र को ढंककर, 108 बार "हंस:" मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। और उस जल से सूर्य का स्मरण करते हुए, सूर्य का अष्टाक्षर मंत्र "ॐ घृणि सूर्य आदित्य" का जाप करते हुए स्नान करे। इससे साधक निरोग होता है, इतना ही नही वह अनंत आयु, आरोग्य और वैभव प्राप्त करता है। शरीर की सारी नकारात्मकता को वो जला देता है।
विवेक
अंनत प्रेम
अनंत प्रज्ञा
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