नित्य प्रार्थना में, यदि धरणी की, प्रार्थना की जाए तो, वो आपको सारे कार्य मे सफलता दिलाती है। ये प्रार्थना पूरे भाव से यदि नित्य की जाए, तो ऐसा कुछ भी नही पृथ्वी में जो अप्राप्य हो। अथर्ववेद के ये मंत्र बहुत शक्तिशाली है।
अदितिघरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः ।
विश्व देवाअदितिःपञ्चजना अदितिर्जात मदितिर्जनित्वम् । १॥
महीमूषु मातर सुवतानामृतस्य पत्नीमवसे हवामहे । तुविक्षनामजरन्तीमुरूचीं सुशर्माण मदिति सुप्रणीतिम् ॥२॥
सुत्रामाणं पृथिवी द्यामनेहसं सुशमणिमदिति सुप्रणीतिम् ।
देवी नावं स्वरित्र । मनागसो अस्त्रवन्तीमा रहेमा स्वस्तये ॥३॥
वायस्य नु प्रसवे मातरं महीमिदिति नाम वचसा करामहे ।
यस्याउपस्थ उर्वन्तरिक्षं सा नःशमंत्रिवरूधंनि यच्छात्|४|
[ अथर्ववेद का० ७ अ० १-सू० ६ ]
यह पृथ्वी ही स्वर्ग, यही अन्तरिक्ष पैदा करने वाली माता, उत्पादक पिता तथा उत्पन्न हुआ पुत्र है। यही सब देव, और पञ्चजन भी यही है। जो कुछ उत्पन्न हुआ है, हो रहा है और उत्पन्न कर रहा है वह सब अदिति पृथ्वी ही है ||१||
शुभ कार्य करने वालों की हितकारी, बहुत प्रकार के क्षात्र तेजयुक्त, सत्य का पालन करने वाली अविनाशी, विशाल, सुखदाता, अन्न प्रदान करने वाली देवमाता अदिति ( पृथिवी) की हम रक्षा के लिये आवाहन करते है ||२||
अच्छी तरह रक्षा करने वाली, पृथ्वी पर हमें सुख देने वाली, कुशल रखने बाली, छेद रहित सुदृढ़ नौका की भांति चढ़कर उसकी शरण में जाते हैं ॥३॥
अन्न की उत्पत्ति के लिए, उस पृथ्वी माता अथवा मातृभूमि का हम गुणगान करते हैं जिसके समीप ही विस्तृत आकाश है। वह पृथ्वी माता हमको तिगुना सुख प्रदान करे ॥४॥
अथर्ववेद का० ७ अ० १-सू० ६
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा
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