पार्वती स्त्रोत
कन्याओ के शीघ्र विवाह के लिए।
जानकीकृत पार्वतीस्तोत्र का पाठ करने से इच्छित वर की प्राप्ति होती है। माता सीता ने, भगवान को पतिरूप में प्राप्त करने हेतु, निम्न स्त्रोत द्वारा देवी पार्वती गौरी की स्तुति की थी।
यह अनुपम स्तोत्र उन्हें करना लाभदायक है, जिनके विवाह में बाधाएं आ रही है, उन्हें इस जानकीकृत पार्वतीस्तोत्र का पाठ करना चाहिए ताकि विवाह में होने वाले विलम्ब का अंत हो और उन्हें मनोनुकूल, मनोवांछित, उपयुक्त वर शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त हो सके। इस स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व पार्वतीजी की आराधना और पूजन करना चाहिए। पार्वतीजी अर्थात् गौरी का सविधि पूजन करने से पूर्व गणपति पूजन भी करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि जानकीकृत पार्वती स्तोत्र के पाठ नित्य करने से मनोनुकूल वर अवश्य ही शीघ्र प्राप्त होता है। मंगला गौरी व्रत ऐसे तो सावन के प्रथम मंगलवार के रखा जाता है, फिर भी श्रद्धा भाव से मंगलवार के व्रत रख के यदि 7 पाठ नित्य किया जाए तो विवाह में आ रही सारी अड़चने खत्म होती है। ये प्रयोग शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार से आरंभ कर सकते है।
जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रम्
पार्वतीस्तोत्रम्
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये ।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते ।।1।।
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी ।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते ।।2।।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे ।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते ।।3।।
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते ।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले ।।4।।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी ।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये ।।5।।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि ।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते ।।6।।
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा ।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते ।।7।।
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय: ।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते ।।8।।
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते ।।9।।
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि ।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते ।।10।।
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम् ।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम् ।।11।।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम् ।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम् ।।12।।
श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
हिन्दी में अर्थ :
जानकी बोली –
सबकी शक्ति स्वरूपे ! शिवे ! आप सम्पूर्ण जगत की आधारभूता हैं. समस्त सद्गुणों की निधि हैं तथा सदा भगवान शंकर के संयोग-सुख का अनुभव करने वाली हैं, आपको नमस्कार ह. आप मुझे सर्वश्रेष्ठ पति दीजिए।।1।।
सृष्टि पालन और संहार के जो बीज हैं, उनकी भी बीजस्वरुपिणी आपको नमस्कार है ।।2।।
पति के मर्म को जानने वाली पतिव्रतपरायणे गौरि ! पतिव्रते ! पति अनुरागिणी ! मुझे पति दीजिए, आपको नमस्कार है ।।3।।
आप समस्त मंगलों के लिए भी मंगलकारिणी हैं. संपूर्ण मंगलों से संपन्न हैं, सभी प्रकार के मंगलों की बीजरूपा हैं, सर्वमंगले ! आपको नमस्कार है ।।4।।
आप सबको प्रिय हैं, सबकी बीजरूपिणी हैं, समस्त अशुभों का विनाश करने वाली हैं. सबकी ईश्वरी तथा सर्वजननी हैं, शंकरप्रिये आपको नमस्कार है ।।5।।
हे परमात्मस्वरूपे ! नित्यरूपिणी ! सनातनि ! आप साकार और निराकार भी हैं, सर्वरूपे ! आपको नमस्कार है।।6।।
क्षुधा, तृष्णा, इच्छा, दया, श्रद्धा, निद्रा, तन्द्रा, स्मृति और क्षमा – ये सब आपकी कलाएँ हैं, नारायणि आपको नमस्कार है।।7।।
लज्जा, मेधा, तुष्टि, पुष्टि, शान्ति, सम्पत्ति और वृद्धि – ये सब भी आपकी ही कलाएँ हैं, सर्वरूपिणी ! आपको नमस्कार है।।8।।
दृष्ट और अदृष्ट दोनों आपके ही स्वरूप हैं, आप उन्हें बीज और फल दोनों प्रदान करती हैं. कोई भी आपको निर्वचन नहीं कर सकता है. हे महामाये ! आपको नमस्कार है ।।9।।
शिवे आप शंकर संबंधी सौभाग्य से संपन्न हैं तथा सबको सौभाग्य देने वाली हैं. देवी ! श्री हरि ही मेरे प्राणवल्लभ और सौभाग्य हैं. उन्हें मुझे दीजिए. आपको नमस्कार है ।।10।।
जो स्त्रियाँ व्रत की समाप्ति पर इस स्तोत्र से शिवादेवी की स्तुति कर भक्तिपूर्वक उन्हें मस्तक झुकाती हैं, वे साक्षात श्रीहरि को पतिरूप में पाती हैं ।।11।।
इस लोक में परात्पर परमेश्वर को पतिरूप में पाकर कान्त सुख का उपभोग करके अन्त में दिव्य विमान पर चढ़कर भगवान श्रीकृष्ण के समीप चली जाती हैं ।।12।।
( श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण में जानकी जी द्वारा किया गया पार्वती स्तोत्र पूर्ण हुआ)
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