सभी दिव्यात्माओं को आत्मनमन, वैवाहिक विघटन को टालने की पवमान शुक्तं की पोस्ट आपने पढ़ी होगी, बहुत से लोगो के आग्रह पर ये पोस्ट हिंदी में, उन लोगों के लिए जो संतान सुख से वंचित है। मैं सम्पूर्ण आस्था और निसंकोच भाव से ये कहना चाहता हूँ, की किसी भी प्रयोग अथवा मंत्र जप की सार्थकता आपको अपनी उपयुक्त ऊर्जा का उपयोग करने में ही है, मंत्र शक्ति द्वारा आराधना तथा निरंतर जप के प्रभाव से व्यक्ति के भीतर सन्निहित ऊर्जा, ओजस तथा शक्ति, कामना की संसिद्धि की स्थिति निर्मित कर देती है, अतःकिसी भी मंत्र प्रयोग के संपादन से पूर्व अखंडित विस्वास तथा आस्था की अनिवार्यता असन्दिग्ध है।
निम्नलिखित मंत्रो से जल अभिमंत्रित करके संतान सुख से वंचित स्त्री पिये, इससे गर्भ दोषो की निवृत्ति और गर्भ धारण करने की क्षमता प्राप्त होती है। ये मंत्र अथर्व वेद से लिए गए है, और अनुभव सिद्ध है।
विवेक
संतान प्राप्ति के लिए मंत्र ( अथर्व वेद)
येन वेहद लभुविथ नाशयामसि तत् त्वत
इदं तदन्यत्र त्वदहं दूरे नी दक्ष्मसि ।। 1
आ ते योनि गर्भ एतु पुमान बाणईवेषुधिम्
आ दिरो अत्र जायतो पुत्रस्ते दशमाक्य:।। 2
पूमांसं पुत्र जनय तं पुमाननू जायतं।
भवासि पुत्राणां माता जानानां जनयाश्च यान् ।। 3
यानी भद्राणि बीजन्यृषभा जनयन्ति च।
तैस्त्वं पुत्रं विन्दस्व प्रसूर्धेनुका भव ।। 4
कृणोमि ते प्रजापत्यमा योनि गर्भ एतु ते
विदस्व त्वं पुत्रं नारि यस्तुभ्यं शशसच्चसु तश्मे त्वं भव।। 5
यासां द्योष्पिता पृथ्वी नाता समुद्रो सूलं विरधां वभूव।
तास्त्वा पुत्रविद्याय दैवी: प्रावन्त्वौषधयः।। 6
(अथर्व वेद 3/42)
शमीमश्वत्था आरूढ़स्तत्र पुसवनं कृतम
तद् वै पुत्रस्य वेदन तद् स्त्रीष्वाभरामसि।। 7
पुंसि वै रेतो भवति तत् स्त्रीयामनुषिच्यतै
तद् वै पुत्रस्य वेदन तत् प्रजापतिर ब्रवित्।। 8
प्रजापतिर सुमतिः सिनीवाल्य चीक्लृ पन्।
स्त्रैयूषमन्यत्र दधत् पुमांससु दधदिह।। 9
( अथर्व वेद 6/11)
वन्तासि यच्चसे हस्तावप रक्षांसि मेधसि
प्रजां धनं च गुट्ठणानः परिहस्तो अभूययम्।। 10
परिहस्त वि धारय योनि गर्भाय घातवे।
मर्यादे पुत्रमा धेहि त्वमा गमयागमे।। 11
य परिहस्तमनिभरदितिः पुत्रकाम्या।
त्वष्टा तमस्या आ वध्नाद् तथा पुत्रं जनादिति।। 12
(अथर्व वेद 6/81)
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा
No comments:
Post a Comment