Thursday, February 18, 2021

MANTRA TO REMOVE BLACK MAGIC-MAHASUDARSHAN MANTRA

 सभी दिव्यात्माओ को नमन,

देवी के मंत्र के बाद आज आपको देव के मंत्र से परिचित कराते है,
यदि आप काले जादू, गृह बाधा और षट् कर्म (मारण,मोहन,स्तंभन आदि कर्म)से पिड़ित हैं,तो उनसे छुटकारा कैसे प्राप्त हो?? आज ये आप को बताता हूँ।
विवेक
सारी नकारात्मक उर्जा हटाना है,तो जाप करे इस महामंत्र का जो ग्रहो का मर्दन और निच कर्म का नाश करता है, जो व्यापक प्रभाव होने के कारण व्योमव्यापी" कहा जाता है,इसे महासुदर्शनमंत्र कहते हैं।
मंत्र है -
सहस्रार हुं फट्
ये मंत्र स- सोम, ह-प्राण,स-अमृत,उसके बाद काल पावक- रा,अग्नि - र के साथ अस्त्र मंत्र हुं फट् से बना है।
इसका प्रयोग अंग न्यास के साथ करें।अंग न्यास के साथ किया गया सुदर्शन चक्र मंत्र क्षुद्र संज्ञक अभिचार को,ग्रह बाधा हर लेने वाला और समस्त मनोरथों को पूर्ण करने वाला है।
अंग न्यास"-
आचक्राय स्वाहा,हृदयाय नम:।
विचक्राय स्वाहा,शिरसे स्वाहा।
सुचक्राय स्वाहा,शिखायै वषट्।
धीचक्राय स्वाहा,कवचाय हुम्।
संचक्राय स्वाहा,नेत्राय वौषट।
ज्वालाचक्राय स्वाहा,अस्त्राय फट्।
-तंत्रसार संग्रह
इसके बाद भगवान विष्णु का चक्राकार कमल के आसन पर ध्यान करें।और १०८ बार ४० दिन तक जाप करे।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

PRASHN VICHAR FOR STOLEN OBJECT


ज्योतिष द्वारा चोरी गयी वस्तू का ज्ञान ...

कभी -कभी घरों में छोटी मोटी चोरी की घटना घट जाती है।
तब एक छट -पटाहट सी रहती है ,चोर कौन हो सकता है।
ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता प्रश्न कुंडली से लगाया
जाता है।
जब भी चोरी का पता लगता है उस समय को नोट कर लीजिये।
अगर किसी को जन्मकुंडली देखने का ज्ञान है तो ठीक है नहीं
तो किसी भी ज्योतिष के पास समय को बता कर समस्या का
समाधान किया जा सकता है।
चोरी होने की सूचना मिलते ही तुरंत प्रश्न कुंडली बनायें।
मेष या वृषभ लग्न ----पूर्व दिशा
मिथुन लग्न ----- अग्नि कोण
कर्क लग्न ---- दक्षिण
सिंह लग्न ------------ नैरित्य कोण
कन्या लग्न --------- उत्तर दिशा
तुला और वृश्चिक लग्न -- पश्चिम दिशा
धनु लग्न ------------ वायव्य कोण
मकर और कुम्भ लग्न ---उत्तर दिशा
मीन लग्न ------------इशान कोण
उपरोक्त लग्नो में खोयी वस्तु ,उसके दिखाए गए लग्नो के सामने
की दिशा में गयी है।
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अब सवाल उठता है चोरी करने वाला कौन हो सकता है तो
नीचे लिखे लग्नो के आधार पर पता लगाया जा सकता है।
मेष लग्न ---ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष
वृषभ लग्न--क्षत्रिय
मिथुन लग्न -----वेश्य
कर्क लग्न -------शुद्र या सेवक वर्ग
सिंह लग्न ------स्वजन या आत्मीय व्यक्ति
कन्या लग्न---- कुलीन स्त्री ,घर की बहू -बेटी या बहन
तुला लग्न ----पुत्र ,भाई या जमाता
वृश्चिक लग्न-- इतर जाति का व्यक्ति
धनु लग्न ---स्त्री
मकर लग्न ---वेश्य या व्यापारी
कुम्भ लग्न---चूहा
मीन लग्न----खोयी घर में ही पड़ी है कहीं ( मिस-प्लेस )
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यह सब जानने के बाद यह भी प्रश्न उठता है , जो सामान चोरी
हुआ है वह मिलेगा या नहीं ? इसके लिए प्रश्न कुंडली में चंद्रमा
की स्थिति देखी जाती है। यहाँ पर चंद्रमा को मालिक और
सातवें भाव को चोर माना जाता है।चौथे भाव को धन -
प्राप्ति की जगह और लग्न -भाव को चोरी गया सामान
माना जाता है।
1) लग्न -भाव का स्वामी अगर सातवें घर या उसके स्वामी के
साथ हो तो कोशिश करने पर चोरी गया धन मिल जाता है।
2)अगर लग्न -भाव का स्वामी अष्ठम में हो तो चोर खुद ही
चोरी की गयी वस्तु लौटा देगा।लेकिन ग्रह अस्त होगा तो
चोरी का पता चलेगा पर वस्तु नहीं मिलेगी।
3)लग्न-भाव का स्वामी दसवें घर के स्वानी के साथ है तो चोर
माल सहित पकड़ा जायेगा।
4) अगर लग्नेश की दृष्टि दसवें घर के स्वामी पर नहीं पद रही हो
तो चोरी गयी वस्तु नहीं मिलेगी।
5)अगर सातवें घर का स्वामी सूर्य के साथ अस्त हो तो बहुत समय
बाद चोर का तो पता चल जायेगा पर वास्तु नहीं मिलेगी।
6)अगर सप्तमेश और लग्नेश साथ में हो तो चोर राज भय से डर कर
खुद ही माल को दे देता है।
7)अगर सप्तमेश पर लग्नेश की दृष्टि ना पड़ रही हो तो ना चोर
को लाभ लाभ होता है ना मालिक को ,माल को मध्यस्थ ही
हड़प लेता है।
8)प्रश्न कुंडली में अष्ठम भाव चोर के धन रखने का स्थान होता
है इसलिए अगर धन भाव का स्वामी अष्ठम में ही बैठा हो तो
माल नहीं मिलेगा।और अगर धन भाव का स्वामी सप्तम में हो
तो भी माल नहीं मिलता क्यूँ कि "चंद्रास्वामी चोर सप्तम "
के अनुसार सप्तम भाव स्वयं चोर है।
9) धनेश अगर अष्टमेश के साथ हो तो धन मिल जाता है।
10) अगर अष्टमेश ,दशमेश के साथ हो तो राज-पुरुष चोर का
पक्षपाती ही माल नहीं मिलेगा।
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अब चोरी हुई वस्तु कहाँ छिपाई गयी है इस पर विचार करते हैं।
1) लग्नेश और सप्तमेश का आपस में परिवर्तन या दोनों एक ही
भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।
2) चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होगी और अगर
सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी।चंद्रमा अगर दशम ने हो
तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु उत्तर दिशा में मिलेगी।
3) अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष ,सिंह ,धनु ) हो तो वस्तु घर
के पूर्व,अग्नि -स्थान , रसोई घर में ही मिल जाती है।
4 ) लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ ,कन्या ,मकर ) हो तो
वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।
5 ) अगर लग्न में वायु -तत्व राशि ( मिथुन ,तुला कुम्भ ) हो तो
वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।
6 )लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क ,वृश्चिक ,कुम्भ ) हो तो वस्तु
जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी।
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ग्रहों के हिसाब से चोर कौन है और कितनी उम्र का है ये भी
पता लगाने की कोशिश करते हैं।
1) प्रश्न -कुंडली में यदि लग्न पर सूर्य-चन्द्र दोनों की दृष्टि पड़
रही हो तो वस्तु किसी घर के व्यक्ति ने ही चुराई है।और यदि
लग्नेश ,सप्तमेश से युक्त हो कर लग्न में हो तो भी चोरी किसी
घर के व्यक्ति ने ही की है।
2)लग्न पर सूर्य या चन्द्र किसी एक ही की दृष्टि पड़ रही हो
तो वस्तु किसी आस पास रहने वाले व्यक्ति ने चुराई है।
3)अगर सप्तमेश द्वादश या तृतीय स्थान में हो तो घर के नौकर ने
चोरी की है।
4 )अगर सप्तमेश स्वग्रही या अपनी उच्च राशि में हो तो चोरी
पेशेवर चोर ने की है। यहाँ पर चोर की शक्ति का ज्ञान
लग्न,सप्तम और दशम भाव के बल के अनुसार करना चाहिए।
5) प्रश्न -कुंडली में अगर सूर्य बलवान हो तो पिता या
पितातुल्य व्यक्ति ,चंद्रमा बलि हो तो माँ या मातातुल्य
महिला ,शुक्र बली हो तो महिला ,वृहस्पति बलि हो तो घर के
मालिक ने ,शनि बलि हो तो पुत्र ने और मंगल बलि हो तो भाई
या सगा भतीजा तथा बुध बलवान हो तो मित्र या मित्र -
सम्बन्धियों ने चोरी की है।
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लग्न में अगर शुक्र ----युवक
बुध ---बालक
गुरु -----वृद्ध
मंगल--युवक
शनि -वृद्ध चोर है।
लग्न और दशम भाव के मध्य सूर्य है तो चोर बालक है। दशम भाव
और सप्तम भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर युवक है। लग्न और चतुर्थ
भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर अत्यंत वृद्ध है।

REIKI HINDI ARTICLE


रेकी कैसे कार्य करती है?

विवेक
हमारे शरीर में ठोस ऊर्जा क्षेत्र है, जिसे हम भौतिक शरीर कहते हैं और कुछ कम सघन ऊर्जा क्षेत्र है जिन्हें सूक्ष्म ऊर्जा क्षेत्र कहा जाता है। ये सूक्ष्म ऊर्जा क्षेत्र प्रकाश की गति से भी तेज गति में गतिशील होते हैं और उससे कम में भी गतिशील हो सकते हैं,जिसका कारण मानव अवस्था के विविध आयाम होते हैं।
ये सूक्ष्म गतिमान ऊर्जा क्षेत्र प्रकाश की गति से तीव्र गति से शरीर में आ सकते हैं। ये ऊर्जा क्षेत्र हमारे भावनात्मक, मानसिक और भौतिक शरीर की संरचना और क्रियाशीलता के कारक बनते हैं। भौतिक स्तर पर जब इन सूक्ष्म गतिमान ऊर्जा क्षेत्रों में ऊर्जा भर जाती है, तो शरीर में सुसंगतता आ जाती हैं।
जब ये ऊर्जा क्षेत्र समन्वित रहते हैं तब ये एंजाइम,प्रोटीन संरचनाओं और जिवाणुओं का विभाजन करने का कार्य करते हैं। जब रक्ताणुओं का ठीक से विभाजन होता है और वे अपना कार्य सुचारु रूप से करते हैं तो अंत:स्त्रावी ग्रंथियां,शरीर के अन्य अंग और कोशिकाएं भी ठीक ढंग से काम करती हैं और हम निरोग होते हैं -पूर्ण स्वस्थ होते हैं।
इसके विपरीत यदि भावनात्मक, मानसिक या अध्यात्मिक दबाव अथवा जिंदगी में असंतुलनों के कारण इन सूक्ष्म ऊर्जा क्षेत्रों की गति कम हो जाती हैं, तो शरीर में असंतुलन आ जाते हैं और हमें रोग घेर लेते हैं।
रेकी की ऊर्जा सूक्ष्म गतिमान क्षेत्रों को संतुलित करके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं। ये सूक्ष्म शरीर और चक्रों में संतुलन लाकर ये कार्य करती हैं।
जब सूक्ष्म शरीर और चक्र एक प्रवाह धारा में नहीं होते तो इसमें ईश्वर प्रदत्त सार्वभौम जीवनी शक्ति नहीं पहुंचती,जब ये रेकी द्वारा एक सीध में आ जाते हैं, तो ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह संभव हो जाता है।
रेकी उपचार सीखने के लिये न तो कई महीनों तक अध्ययन करने की आवश्यकता होती हैं और न व्यक्ति को ऊत्तम बौद्धिक समझ होने की आवश्यकता होती हैं। इसकी विशेषता इसका सरल होना है।
रेकी ऊर्जा उपचार प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर सतत प्रयासरत होने की दिशा में उन्मुख करता है। इसका प्रशिक्षण लेने के बाद वे तेजी से अध्यात्मिक छलांग लगाते हैं।प्रशिक्षण पाने वाले में अनेक प्रकार के भावनात्मक और अध्यात्मिक परिवर्तन आते हैं।
रेकी उपचार सीखकर खुद का उपचार २१ दिन करके इसका शुभारंभ होता है।

SARWARISHT NIVARAN PRAYOG- MAHAMANTRA

आत्मा नमस्ते,

आज आपको सर्वारिष्ट निवारण के लिये अनुभूत प्रयोग बता रहा हूँ,इस पाठ के फलस्वरूप पुत्र-हीन को पुत्र-प्राप्ति होती हैं, जिसका विवाह नहीं होता, उसका विवाह हो जाता है। इस पाठ के प्रभाव से सभी प्रकार के दोषों- ज्वर, क्षय, वात-पित-कफ की पीड़ाओ और भूतादिक सभी बाधाओं का निवारण होता हैं।इसके पाठ से बेकार को जीविकोपार्जन, नौकरी व्यापार की प्राप्ति होती हैं।
विवेक
सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र


ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं। इस स्रोत का पाठ अपने लिए करना है तो मम" का उच्चारण करें, जहां यजमान का उच्चारण है वहाँ।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

REMEDIES FOR PEACE IN HOUSE


आत्मा नमस्ते

गृह क्लेश से यदि आप परेशान हैं,पति-पत्नि में,सास- बहू में , पिता -पूत्र में, भाई - भाई में, भाई - बहन में, या आपस में किसी भी उत्सव के समय घर में झगड़ा होने पर निम्न प्रयोग अपनाये, 5 मिनट में लड़ाई समाप्त हो जाएगी।
विवेक

जब भी एक व्यक्ति, स्त्री या पुरुष झगड़ना शुरू करें, दूसरा व्यक्ति स्त्री या पुरुष, जिससे वह झगड़ा कर रहा है या सुन रहा है। कान में उंगली डाल लें और तीन बार " शान्तम पापम्"" बोलते हुए जल के छीटें स्वयं पर दें तथा एक माला निम्न मंत्र की की बोलता रहे।

मंत्र -
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम: "

इस मंत्र की एक माला का जाप होते ही सामने वाला झगड़ालू बोलना बंद कर देगा। कोई भी धर्य रखकर ये प्रयोग करके देख सकता है , बहुत ही सरल एवं सिद्धहस्त वैदिक प्रयोग है।
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

MANTRA TO HEAL RELATIONSHIP

Atma Namaste all the divine soul, sharing with you today a

Powerful shlok from PIPPLAD SANHITA of ATHARVA VED. When you are not getting any results from different mantra and hopeless in your relationship then try this.
Vivek
Pavamanasuktam is a very famous chant from the Vedic tradition. It is often chanted to help increase ojas energy in a a person that helps them in their relationship. This chant was recited to purify the past energy of relationship, so that a new positive beginning could be commenced.
It is also used in healing, when dark energy such as past traumas, abuses or impressions from abuse/violence needs to be transformed. It is also used for ENDANGERED MARRIAGE LIFE, when you will not get any SOLUTION except separations, then this will save your MARRIAGE LIFE.
Chant this daily and specially on Monday. If possible do ahuti of ghee from this shlok.


PAVAMAN SHUKTAM
Sahastraaksham shatdhaarmushibhihi paavanam kritam
Ten sahstradharen pavmanah Punatu maam.1
Yen putmantriksha yashminwapurushi shritah
Ten shahastra dharen pavmaanah Punatu maam.2
Yen pute dyawa Prithvi aapah Putaa atho swaha
Ten sahastra dharen pavmaanah Punatu maam.3
Yen pute ahoratre disah puta uut yen pradishah
Ten sahastra dharen pavmaanah Punatu maam.4
Yen puto suryaa chandramaso nakshatrani bhootkritah sah yen putaaha
Ten sahastra dharen pavmaanah Punatu maam.5
Yen puta vedi ragnayaha paridhayaha sah yen putaha
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.6
Yen putam bahir rajyamatho haviryen puto yagyo vashatkaaro hutaahutihi
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.7
Yen puto vrihiyavo yabhyam yagyo adhinirmitah
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.8
Yen puta ashwa gaaon atho puta ajaavayah
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.9
Yen puta richah saamani yajubrahmanam sah yen putam
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.10
Yen putaa atharvaangirso devtaah sah yen putaah
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.11
Yen putaa ritwo yenartva yebhyam samvantsaro adhinirmitah
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.12
Yen putaa vanashpatyo vaanshpatya aushadhayo vorudhah sah yen putaha
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam .13
Yen puta gandharvarpsarasah sapunyajanaha sah yen putaah
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.14
Yen putaha parvataha himwantoho vaishvaanarah paribhuvah sah yen putaaha
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam .15
Yen puta nadyaha sindhavah samudraha sah yen putaha
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam .16
Yen puta vishwadevaha parmesthi prajapatihi
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam .17
Yen putah prajapatilokam vishwam bhootam swaraaj bhaar
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.18
Yen putah stanyitnurpamutsah prapatihi
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.19
Yen putmritam Satyam tapo dikshaam putyate
Ten sahrsradharen pavamanah puanaatu maam.20
Yen putmidam sarvan yadbhootam yacch bhavyam
Ten sahastra dharen pavamaanah punaatu maam.21
( Note- Its not available on google,so please save this article, i have specially write it for the benefits of needed one. Its available on Atharva ved and there is different pavmaan shuktam from Rigved too that helps in cleansing home, will send in next time. Althought I have taken every care to right it perfectly but if you have any problem in pronouncing then message me-Vivek )
To know more on relationship healing u can msg me.
Vivek
Infinite love
Infinite wisdom

REIKI


सभी दिव्यात्माओ को आत्मनमन,

रेकी की ऊर्जा का प्रयोग प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनि करते थे । प्राचीन भारत में न्यास योग एक ऐसी ही पद्धति थी । हाथों के द्वारा ऊर्जा का संचार करके बड़ी से बड़ी बिमारी ठिक की जाती थी । Dr. Usui के कारण ये ज्ञान फिर से पूरे विश्व में प्रवाहित हुआ ।
विवेक
सम्मोहन में आँखों से किसी को सम्मोहित करने की कला के बारे में अपने कई बार पढ़ा है लेकिन क्या वाकई अभ्यास मात्र से आप किसी को भी सम्मोहित करने में सक्षम हो जाते है. नहीं ! क्यों की शरीर की प्राण ऊर्जा का प्रवाह आँखों के अलावा हाथो के पोरुओ में भी बहती है.इसलिए अगर हाथ में प्रवाह करती प्राण ऊर्जा के प्रवाह को अभ्यास द्वारा बढ़ा लिया जाये तो सिर्फ सम्मोहन ही नहीं आप दैनिक जीवन किसी को भी अपना बना सकते है. हाथो के पोरुओ से बहने वाली प्राण शक्ति को विकसित कर उसे शक्तिशाली चुंबकीय में बदल कर जड़ पदार्थ को प्रभावित कर सकने की क्षमता होती है. ये क्रिया स्पर्श द्वारा की जाती है. इसके द्वारा किसी प्राणी को भी हम सुविधापूर्वक सम्मोहित कर कर सकते है. सम्मोहन के क्षेत्र में इसे "पास क्रिया" या "पास मार्जन" या फिर अध्यात्म में "रैकी" से जाना जाता है.
Dr. मेस्मेर अनुसार हर इंसान के अंदर दूसरों को अपने हाथो द्वारा प्रभावित करने की क्षमता है. इसलिए हर प्रसिद्ध व्यक्ति BODY ऑफ़ LANGUAGE को ध्यान में रखकर दूसरे लोगो से लोगो पर ध्यान दे तो वो दूसरों से बातचीत के दौरान अपने हाथो ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते है. ये वो दूसरों को प्रभावित करने के लिए और आकर्षण में बांधे रखने के लिए करते है. इसे भारतीय सस्कृति में शक्तिपात कहते है. इसके अभ्यास के लिए जरुरी है पहले जड़ पदार्थो पर अभ्यास किया जाये फिर सजीव / जीवित प्राणी पर किया जाये।
प्राचीन काल से यह शक्ति हर इंसान में मौजूद थी आज भी है. लेकिन जिसने अभ्यास द्वारा बढ़ा लिया उसने इस शक्ति को जाना है. इसका स्पर्श दिल को सुकून देने वाला होता है.बिल्कुल वैसा ही जैसा आपके बुजुर्ग देते वक़्त आपके सिर पर हाथ फेरे तब उसका अहसास कीजिये. ये अहसास ही हमें रैकी के दौरान होता है. जैसे ऊर्जा का प्रवाह एक सिरे से दूसरे सिरे में हो रहा हो. इसीलिए प्राचीन काल में जब कोई ऋषि हमें उसकी कामना पूरी होती है. पूरा करती थी हमारी प्राण ऊर्जा। इसलिए बच्चों को बुजुर्गो पैर लगना उनसे आशीर्वाद लेने जैसे संस्कार दे. क्यों की ये की ये प्राण शक्ति बीमारी, तनाव, और मुश्किल को दूर कर सकती है.
विवेक
अनंत प्रेम
अनंत प्रज्ञा

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